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2023-02-22

2021-09-20

अपना Driving Training and License Center खोलकर पैसे कमाएं
अब ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए लोगों को आरटीओ का चक्कर नहीं लगाना होगा. सरकार ने डीएल बनवाने के लिए नई तरह की व्यवस्था बनाई है. चूंकि आरटीओ कार्यालय में हर दिन सैकड़ों की संख्या में आवेदन आते हैं और हर व्यक्ति का ड्राइविंग टेस्ट लेने में लंबा समय लग जाता है. इस कारण आपकी बारी काफी देर से आती है और लाइसेंस बनने में काफी देरी होती है.
अब प्राइवेट कंपनी भी जारी कर सकेंगी ड्राइविंग लाइसेंस
ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने की प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने नये दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं. केंद्र सरकार ने ड्राइविंग लाइसेंस (Driving license) बनाने को लेकर बड़ा ऐलान किया है. सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के नोटिस के मुताबिक, अब कार कंपनियां (Car Manufacturers), ऑटोमोबाइल एसोसिएशन (Automobile Associations) और एनजीओ (NGO) को भी ड्राइविंग ट्रेनिंग एंड लाइसेंस सेंटर खोलने की इजाजत होगी.
ये संस्थान अपने सेंटरों में ट्रेनिंग पास कर चुके लोगों को ड्राइविंग लाइसेंस जारी भी कर सकेंगे. अब लर्निंग लाइसेंस (Learning License) के लिए भी आपको परिवहन विभाग के दफ्तरों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे. लेकिन कुछ मामलों में गाड़ियों के पंजीकरण (RC) के लिए अभी भी आपको आरटीओ ही जाना पड़ सकता है. केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MORTH) ने इस बारे में नोटिस जारी कर दिया है. हालांकि, रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस (RTO) पहले की तरह ही ड्राइविंग लाइसेंस जारी करते रहेंगे.
ड्राइविंग लाइसेंस सेंटर खोलने के लिए कौन - कौन अप्लाई कर सकता है?
ड्राइविंग लाइसेंस सेंटर खोलने के लिए क्या जरूरी है?
एप्लीकेशन में क्या-क्या जानकारी देनी होगी?
एक ऑनलाइन पोर्टल भी बनाना होगा
2021-09-11

CCNA क्या है CCNA Course और Certification कैसे करें?
यदि आप भी अपना करियर नेटवर्किंग के क्षेत्र में बनाना चाहते है तो CCNA का कोर्स कर आप इस क्षेत्र में महारत हासिल कर एक अच्छे पोजीशन पर भी पहुच सकते है। बात अगर CCNA की करें तो यह नेटवर्किंग से जुड़ा कोर्स होता है जिसे अमेरिकन कंपनी CISCO ने शुरू किया था। जो एक बहुत ही अच्छा कोर्स है और इसका डिमांड समय के साथ और भी बढ़ता ही जा रहा है। तो चलिए आज हम सब इसपे विस्तार से बात करते है और जानेंगे CCNA क्या है CCNA कोर्स और सर्टिफिकेशन कैसे करें।
2021-09-09

SSL Certificate क्या है और यह कैसे काम करता है?
जब भी हम किसी वेबसाइट पर जाते है तो हमारे मन में SSL को लेकर सवाल जरुर आता है और यह लाजमी भी है। कोई भी व्यक्ति जब कोई काम करता है तो उसके लिए उसका सुरक्षा बहुत ही ज्यादा जरुरी हो जाता है। इस दृष्टिकोण से देखा जाये तो आज के इस समय में बहुत से काम ऑनलाइन हो गया है जो किसी वेबसाइट या फिर किसी APP के द्वारा मैनेज किया जाता है।
2021-08-30

मामला क्या है ... उत्तराखंड में भू- कानून की मांग।
आज का हमारा लेख UTTARAKHAND LAND LAW (उत्तराखंड भू-कानून) के बारे में है। जिसके बारे में विस्तार से इस लेख के माध्यम से हम आज चर्चा करेंगे।
देवभूमि उत्तराखंड की दैवीय और शांत वादियों की रक्षा और इस पलायन के दंश का जवाब देने तथा हमारे भावी पीढि़यों के भविष्य के लिए और हमारी कृषि योग्य भूमि की रक्षा के लिए आज एक सुदृढ़ और सशक्त कानून की आवश्यकता आन पड़ी है।
खिलखिलाते पहाड़, हरे-भरे घास से लदलद मैदान, कल-कल, छल-छल बहते झरने, नदियाँ और पहाड़ की आबोहवा किस को पसन्द नहीं होगी। फिर भी हम पहाडो़ को छोड़कर हर जगह पलायन का दंश ही झेलते आए है।
अभी उत्तराखंड अपने भू कानून को लेकर सुर्खियों में बना हुआ है। आख़िर उत्तराखंड के नागरिकों की मांगें क्या हैं ? और क्यों इसकी आवश्यकता महसूस की गई ? ऐसे ही विषयो पर हम आगे चर्चा करेंगे।
चाहें उत्तराखंड का संगीत, नृत्य, भाषाएं, बोलियों की ही बात हो, या आयुर्वेद औषधियों से समृद्ध पहाड़ी क्षेत्र हो, या अनेक पावन पवित्र नदियों का उदगम क्षेत्र, ऋषि मुनियों की समृद्ध ज्ञान परम्परा ही क्यों न हो आदि। ऐसी ही अनेक ओर भी विशेषताएं उत्तराखंड की भूमि पर मौजूद है, अगर सोचने बैठे तो एक बड़ी लिस्ट तैयार हो जाए।
उत्तराखंड रीति रिवाजों, परंपराओं, कला और संस्कृति आदि से समृद्ध राज्य है। यहाँ की सांस्कृतिक विशेषताओं का गवाह पूरा देश ही नही बल्कि विश्व भी किसी न किसी रूप में रहा है।
जब भी देश में किसी भी क्षेत्र की संस्कृति को कोई हानि या ख़तरे का संकेत मिलता हैं। तो स्थानीय लोगों ने उसके खिलाफ़ हमेशा से ही अपने पूरे सामर्थ्य के साथ आवाज उठाई है।
ऐसी ही एक गूँज उत्तराखंड राज्य के नागरिकों द्वारा सोशल मीडिया माध्यमों पर, उत्तराखंड की संस्कृति को सहेजने के लिए उठायी जा रही है।
भारत भौगोलिक विभिन्नताओं से सम्पन्न देश हैं यहाँ मैदान, पठार, पहाड़ी क्षेत्र, दलदली क्षेत्र आदि भौगौलिक विशेषताएं पाई जाती हैं। भारत के प्रत्येक राज्य में अलग अलग परंपराएं, रीति रिवाज, कला और संस्कृति मौजूद है जैसे कि रहन-सहन, पोशाक, खान-पान, स्थानीय संगीत, नृत्य आदि। और उत्तराखंड ने इसमें हमेशा चार चाँद लगाए हैं।
आज का उत्तराखंड का युवा बुध्दिजीवी नागरिक इस बात को अच्छी तरह जनता है और डंके की चोट पर कह सकता है की भारत देश में उत्तराखंड जैसा विवधता संपन्न और कोई दूसरा राज्य नहीं है न हो सकता है जिसमें कला, संस्कृति, नृत्य, संगीत, खान-पान से लेकर धार्मिक, आध्यात्मिक ज्ञान, वीर गाथाएँ, ऐतिहासिक पर्यटन, और नैसर्गिक सुंदरता का अधभूत, अकल्पनीय समावेश हो।
उत्तराखंड भारत की अतुलनीय अमूल्य धरोहर है जहाँ न जाने कितने मिनी स्विट्जरलैंड और कश्मीर बसते हैं जँहा विकास और रोजगार की असीमित संभावनाएं है उसी की सुरक्षा के लिए आज का उतराखंड वासी एकजुट और तत्पर होकर भू कानून की पुरजोर मांग कर रहा है पर राज्य सदैव से ही सरकार की उपेक्षा का गवाह रहा है।
तो आइये उत्तराखण्ड भू कानून के बारे में विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं।
क्या है उत्तराखंड भू कानून?
साल 2000 में जब उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग कर अलग संस्कृति, बोली-भाषा होने के दम पर एक संपूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया था. उस समय कई आंदोलनकारियों समेत प्रदेश के बुद्धिजीवियों को डर था कि प्रदेश की जमीन और संस्कृति भू माफियाओं के हाथ में न चली जाए. इसलिए सरकार से एक भू-कानून की मांग की गई।
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद 2002 तक उत्तराखंड में अन्य राज्यों के लोग, केवल 500 वर्ग मीटर जमीन खरीद सकते थे। 2007 में यह सीमा 250 वर्गमीटर कर दी गयी थी। 6 अक्टूबर 2018 में सरकार अध्यादेश लायी और “उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम,1950″ में संसोधन का विधेयक पारित करके, उसमें धारा 143 (क) धारा 154(2) जोड़ कर पहाड़ो में भूमिखरीद की अधिकतम सीमा समाप्त कर दी।
आज कल सोशल मीडिया पर उत्तराखंड मांगे भू कानून ट्रेंड कर रहा है। सभी उत्तराखंडियों की एक ही कोशिश है, कैसे भी वर्तमान सरकार के कानों में ये बात पहुँचे।
इस अभियान के पीछे कोई सियासी सोच नहीं है बल्कि यह पहाड़ और यहां की संस्कृति को बचाने के लिए एक जन आंदोलन बन रहा है। उत्तराखंड में यह कानून ना होने के कारण यहां दूरदराज के पहाड़ और गांवों में भूमि पर राज्य से बाहर के लोगों का आधिपत्य होने लगा है।
उत्तराखंड में भू कानून का मुद्दा अचानक गरमा गया है, इस बार इस कानून के पक्ष में आम युवा एकजुट और एक पक्ष में है। बीते कई दिनों से टि्वटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम सहित सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भू कानून के समर्थन में युवा जोरदार अभियान छेड़ रहे हैं। इसमें लोकगीतों से लेकर एनिमेशन और पोस्टर तक का सहारा लिया जा रहा है।
सोशल मीडिया के माध्यम से उत्तराखंड के युवाओं ने ओने पौने दाम पर बिक रही कृषि भूमि बचाने के लिए मजबूत भू कानून की मांग को लेकर अभियान छेड़ दिया है। तमाम सोशल मीडिया मंच पर बीते महीनों से भू कानून की मांग ट्रेंड कर रही है।
उत्तराखंड का युवा भू-कानून की मांग क्यों रहा है ?
उत्तराखंड का भू कानून बहुत ही लचीला है। जिसके कारण यहाँ की जमीन देश का कोई भी नागरिक आसानी से खरीद सकता है।
यहाँ के कुछ लोग, क्षणिक धन के लालच में अपनी पैतृक जमीनों को, अन्य राज्य के लोंगो को बेच रहे हैं। उन लोगो को या तो भविष्य का ये भयानक खतरा, जो हमारे समाज के सीधे-सादे लोगो को नहीं दिख रहा है, या फिर पैसे के लालच में जानबूझकर अपनी कीमती जमीनों को बेच रहे हैं।
इसी पर लगाम लगाने के लिए, कुछ सामाजिक कार्यकर्ता, अन्य युवा मिल कर उत्तराखंड के लिए नए और सशक्त भू कानून की मांग कर रहे हैं।
वर्तमान स्थिति यह है, कि देश के हर कोने से लोग यहाँ जमीन लेकर रहने लगे हैं। जो उत्तराखंड की संस्कृति, भाषा रहन-सहन, उत्तराखंडी समाज के विलुप्ति का कारण बन सकता है।
धीरे-धीरे यह पहाड़ी जीवन शैली, पहाड़वाद को विलुप्ति की ओर धकेल रहा है। इसलिए सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय लोग, एक सशक्त, हिमांचल के जैसे भू कानून की मांग कर रहें हैं।
इसीलिए ट्विटर (Twitter) और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर, उत्तराखंड मांगे भू कानून ट्रेंड कर रहा है।
क्या है हिमांचल का भू-कानून
1972 में हिमाचल राज्य में एक कानून बनाया गया,जिसके अंतर्गत बाहरी लोग, अधिक पैसे वाले लोग, हिमाचल में जमीन न खरीद सकें। उस समय हिमाचल के लोग इतने सम्पन्न नहीं थे, और यह आशंका थी, कि हिमाचली लोग, बाह्य लोगो को अपनी जमीन बेच देंगे,और भूमिहीन हो जाएंगे। और हिमाचली संस्कृति की विलुप्ति का भी खतरा बढ़ जाएगा।
हिमाचल के प्रथम मुख्यमंत्री और हिमांचल के निर्माता, डॉ यसवंत सिंह परमार जी ने ये कानून बनाया था। हिमांचल प्रदेश टेनेंसी एंड लैंड रिफॉर्म एक्ट 1972 (Himanchal Pradesh Tenancy and Land Reforms Act , 1972) में प्रावधान किया था।
एक्ट के 11वे अध्याय में Control on Transfer of Lands में धारा-118 के तहत हिमाचल में कृषि भूमि नही खरीदी जा सकती, गैर हिमाचली नागरिक को यहाँ, जमीन खरीदने की इजाजत नही है। और कॉमर्शियल प्रयोग के लिए आप जमीन किराए पे ले सकते हैं।
2007 में धूमल सरकार ने धारा-118 में संशोधन कर के यह प्रावधान किया था, कि बाहरी राज्य का व्यक्ति जिसे हिमाचल में 15 साल रहते हुए हो गए हों, वो यहां जमीन ले सकता है। इसका बहुत विरोध हुआ, बाद में अगली सरकार ने इसे बढ़ा कर 30 साल कर दिया।
समर्थन में सांकेतिक धरना देने की अपील
सोशल मीडिया मंच के जरिए कई लोगों ने भू कानून के समर्थन में कई बार अपने घरों में 15 मिनट का सांकेतिक धरना देने की अपील की है। हमारे समाज में स्वरोजगार को अभी भी इतनी अहमियत नहीं मिली है पर भविष्य में आने वाली भावी पीढ़ी जरूर इस दिशा में सोचेगी । इसके लिए यहां की भूमि को बचाना अत्यंत आवश्यक है। इस भू-कानून की मांग का उद्देश्य मात्र पहाड़ और यहां के गाँवो की भूमि को बचाना है और कुछ भी नहीं।
हमें हमारी सांस्कृतिक विरासत, हमारी लोकभाषा एवं लोक कला, और यहाँ की सुंदतरता और शांति को सहेजे रखना है तो एक सशक्त भू-कानून की मांग करनी होगी। जिससे हमारी लोकसंस्कृति के साथ-साथ हमारे हकों की भी रक्षा सुनिश्चित हो सके।
उत्तराखंड की संस्कृति की रक्षा, पलायन पर रोक और उत्तराखंड को विकसित करने के लिए एक सख्त भू-कानून जरूरी है। जब देश के एक हिमालयी राज्य हिमांचल में सख्त भू-कानून बन सकता है तो उत्तराखंड क्यों नही ?
देश की विविधता में एकता की विशेषता को संरक्षित करने के लिए स्थानीय संस्कृति को सहेजना अत्यंत आवश्यक हैं। प्रत्येक स्थान की स्थानीय परम्पराओं, रीती रिवाजो, कला और संस्कृति में कुछ न कुछ विशेष ज्ञान ( जैसे संगीत, आयुर्वेद आदि ) अवश्य समाहित होता हैं। जिससे अगर हम स्थानीय संस्कृति को सहेजने का प्रयास नहीं करेंगे तो हज़ारो वर्षो से स्थानीय व्यक्तियों के पास मौजूद हमारी ज्ञान रूपी धरोवर नष्ट होने की कगार पर आ जायेगी।
अतः भारत राष्ट्र की विशेषता तभी अखंड रह पाएगी जब देश के राज्यों की विशेषताओं को संरक्षित करने का कार्य किया जाएगा। सरकार को सभी पहलुओं पर विचार करके इस विषय को गंभीरता से लेते हुए। इस विषय को अपनी प्राथमिकताओं में रखना चाहिए।
Final Words (अंतिम शब्द )
एक उत्तराखंड वासी के रूप में हमारा उद्देश्य उत्तराखंड समाज में जागरूकता का विकास, ज्ञान का प्रसार, उत्तराखंड की कला और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए भरसक प्रयास और प्रसार करना होना चाहिए।
मैं उत्तराखंड में जन्म लेने वाला भारत देश में उत्तराखंड की अमूल्य, अलौकीक, समृद्ध संस्कृति को संरक्षित और सहेजने के पक्ष में हूँ और भू कानून की मांग करता हूँ तथा आप से भी अपेक्षा रखता हूँ की आप इस मुहीम में उत्तराखंड राज्य का साथ देंगे।
मैं आपसे उत्साहपूर्ण अपील करता हूँ की इस लेख को अपने मित्रों और परिचितों के साथ अवश्य शेयर करें और कमेंट बॉक्स में अपना समर्थ अंकित करें।
2021-08-24

Uttarakhand GK - उत्तराखंड सामान्य ज्ञान सम्पूर्ण जानकरी
2021-08-16

Satellite Internet क्या है - पूरी जानकारी
Satellite Internet क्या है यह कैसे हर जगह इंटेरनेट की सुविधा देगा। इस तकनीक में केबल बिछाने की जरुरत नही हैं आइए जानते है इसकी पूरी जानकारी।
आप सब को पता है अब Internet हमारे जीवन में बहुत उपयोगी हो गया है। इसके बिना हम रह नही सकते है। इंटरनेट के माध्यम से कनेक्टिविटी अब एक ‘विकल्प’ नहीं बल्कि एक तत्काल आवश्यकता बन गई है। बिल का भुगतान, यात्रा, किराने का सामान, भोजन, टेक्स्टिंग और बहुत कुछ इंटरनेट पर निर्भर करता है। यदि आवश्यकता बढ़ गई है, तो प्रयास ने भी इसे विश्वसनीय बनाना शुरू कर दिया है।
आज भी, देश में कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां इंटरनेट नहीं पहुंचा है। इस अंतर को खतम करने के लिए अब सैटेलाइट इंटरनेट आ गया है। जिसके जरिए दूरस्त इलाकों से लेकर पहाड़ों और घाटियों तक इंटरनेट उपलब्ध होगा।
2021-08-12

Famous foods of Uttarakhand - उत्तराखंड के प्रसिद्ध भोजन
उत्तराखंड भारत का एक खूबसूरत राज्य है जो मुख्य रूप से अपनी पहाड़ी सुन्दरता, कला, संस्कृति और खाने के लिए प्रसिद्ध है जो यहाँ आने वाले पर्यटकों को उँगलियाँ चाटने पर मजबूर कर देता है।
उत्तराखंड के प्रसिद्ध व्यंजनों के बारे में अनोखी बात यह है कि वे ज्यादातर जलती हुई लकड़ी या लकड़ी के कोयले पर पकाया जाता है, जो उन्हें अतिरिक्त पौष्टिक गुण प्रदान करता है।
उत्तराखंड के खाने में कई वैरायटी मौजूद है जिन्हें कोई भी उत्तराखंड की यात्रा में चख सकता है। उत्तराखंड के फेमस खाने के बार में बहुत से लोग तो अभी भी अनजान है।

Lohaghat ( लोहाघाट ) hidden gem of Uttarakhand - कश्मीर में नहीं लोहाघाट में है असली स्वर्ग!
एक चीनी व्यापारी ने इस शहर के बारे में कहा था कि धरती पर स्वर्ग कश्मीर में नहीं बल्कि लोहाघाट में बसता है। यहां खूबसूरती के अलावा ऐसी जगहें हैं जिनके साथ हैरान करने वाली धार्मिक और ऐतिहासिक गाथाएं भी जुड़ी हैं।
कहते हैं कि प्रकृति को करीब से देखना हो और उसकी गोद में रहने का सच्चा आनंद पाना हो, तो उत्तराखंड एकदम पर्फेक्ट है।
उत्तराखंड राज्य टूरिस्टों के बीच पॉप्युलर डेस्टिनेशन है, लेकिन जब बात घूमने की आती है तो टूरिस्टों के दिमाग में भी सिर्फ चकराता, नैनीताल, देहरादून, चोपता, ऑली, फूलों की घाटी आदि जगहें ही आती हैं, जबकि उत्तराखंड में कई ऐसी गुप्त जगहें हैं, जो अभी भी टूरिस्टों से अछूती-सी ही हैं।
यानी अन्य जगहों के मुकाबले इन गुप्त जगहों की तरफ कम ही टूरिस्ट रुख करते हैं। हालांकि ये जगहें हैं बड़ी खूबसूरत। इनकी खूबसूरती और यहां के पर्यटन स्थलों के बारे में जान कोई भी हैरान रह जाएगा। उत्तराखंड में ऐसी ही एक जगह है लोहाघाट।