Uttarakhand GK - उत्तराखंड सामान्य ज्ञान उत्तराखंड की सभी सरकारी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अति महत्त्वपूर्ण है अगर आप उत्तराखंड से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकरी प्राप्त करना चाहते हैं और उत्तराखंड की किसी भी सरकारी नौकरी के लिए आवेदन कर रहें हैं तो ये जानकारी निश्चित रूप से आपके लिए ही है।
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उत्तराखंड : एक परिचय | Uttarakhand : An Introduction
- उत्तराखंड राज्य की स्थापना उत्तर प्रदेश के 13 पहाड़ी जिलो को अलग करके 9 नवम्बर 2000 को देश के 27 वें तथा हिमालयी राज्यों के क्रम में 11 वें राज्य के रूप में उत्तराँचल नाम से एक नए राज्य का गठन किया गया और 1 जनवरी 2007 को इस राज्य का नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया |
- उत्तराखंड राज्य की राजधानी देहरादून है उत्तराखंड की प्रथम राज्य भाषा हिंदी तथा द्वितीय राज्यभाषा संस्कृत ( 2010 से ) है | उत्तराखंड के दो विधानसभा भवन है देहरादून तथा भराड़ीसैण ( गैरसैण )| उत्तराखंड के अलावा महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर के भी दो विधानसभा भवन है |
उत्तराखंड राज्य से संबंधित प्रतीक चिन्ह
राज्य चिन्ह
- इस चिह्न में एक गोलाकार मुद्रा में तीन पर्वत चोटियों की श्रंखला और उसके नीचे गंगा की चार लहरों को दिखाया गया है |
- बीच वाली चोटी के मध्य में अशोक का लाट है और उसके नीचे ‘सत्यमेव जयते’ लिखा है |
राज्य पुष्प
- ब्रह्मकमल एस्टेरसी कुल का पौधा है और इसका वैज्ञानिक नाम ‘ सोसूरिया आबवेलेटा ‘ है |
- यह मध्य हिमालय में 4800 से 6000 मीटर की उचाई पर पाया जाता है |
- उत्तराखंड में इसकी 24 व पूरे विश्व में 210 प्रजातीय पाई जाती है |
- स्थानीय भाषा में इसे ‘कौल पदम् ‘ कहा जाता है |
- महाभारत के वन पर्व में इसे ‘सौन्धिक पुष्प ‘ कहा गया है |
- ब्रह्मकमल में जुलाई से सितम्बर तक फूल खिलते है|
राज्य पक्षी
- मोनाल को हिमालय के मयूर के नाम से भी जाना जाता है |
- मोनाल मादा पक्षी है और डफिया इसी प्रजाति का नर पक्षी है |
- मोनाल 2500 से 5000 मीटर की उचाई में पाया जाता है |
- मोनाल का वैज्ञानिक नाम ‘लोफोफोरस इम्पिजेनस ‘ है |
- हिमांचल प्रदेश का राज्य पक्षी व नेपाल का रास्ट्रीय पक्षी भी मोनाल ही है |
- मोनाल का प्रिय आहार आलू है|
राज्य पशु
- कस्तूरी मृग का वैज्ञानिक नाम ‘मास्कस कइसोगास्टर ‘ है |
- इसे हिमालयन मस्क डियर के नाम से भी जाना जाता है |
- यह 3600 से 4400 मीटर की उचाई तक पाया जाता है |
- कस्तूरी केवल नर मृग में पाई जाती है |
- कस्तूरी मृग विलुप्ति के कगार पर है इसे बचाना के लिए निम्नलिखित प्रयास किये जा रहे है
- 1972 में केदारनाथ वन्य जीव प्रभार के अंतर्गत 967.2 वर्ग किमी छेत्र में कस्तूरी मृग विहार की स्थापना की गयी |
- 1977 में महरुड़ी कस्तूरी मृग अनुसन्धान केंद्र की स्थापना की गयी |
- 1986 में पिथोरागढ़ के अस्कोट में अभ्यारण्य की स्थापना की गयी |
- 1982 में कंचुला खरक (चमोली ) में कस्तूरी मृग प्रजनन केंद्र की स्थापना की गयी |
राज्य वृक्ष
- बुरांश का वैज्ञानिक नाम ‘रोडोडेन्ड्रोन आर्बोरियम’ है|
- यह 1500 से 4000 मीटर की उचाई तक पाया जाता है
राज्य वाध्य
- ढोल (2015 से )
राज्य खेल
- फुटबॉल (2011 से )
राज्य गीत
- उत्तराखंड देवभूमि, मात्रभूमि शत शत वंदन …. ( हेमंत बिष्ट द्वारा लिखित , 2016 में घोषित )
उत्तराखण्ड के मण्डल
- उत्तराखंड राज्य में दो मण्डल हैं |
कुमाऊँ मंडल
- कुमाऊँ मंडल की स्थापना 1854 में हुई तथा इसका मुख्यालय नैनीताल है |
गढ़वाल मंडल
- गढ़वाल मंडल की स्थापना 1969 में हुई और इसका मुख्यालय पौड़ी में है |
- उत्तराखंड राज्य में कुल 13 जिले है जिसमे से नैनीताल, अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथोरागढ़, चम्पावत तथा उधम सिंह नगर कुमाऊँ मंडल में तथा पौड़ी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली, हरिद्वार तथा देहरादून गढ़वाल मंडल में है |
- उत्तराखंड का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 53483 वर्ग कि. मी. है | क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा जिला चमोली तथा सबसे छोटा जिला चम्पावत है | क्षेत्रफल की दृष्टि से उत्तराखंड देश के कुल क्षेत्रफल का 1.69 % है |
- 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखंड की कुल जनसँख्या 1,00,86,292 है जो देश की कुल जनसँख्या का 0.83% है जनसँख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा जिला हरिद्वार तथा सबसे छोटा जिला रुद्रप्रयाग है |
उत्तराखंड के जिले (Districts of Uttarakhand)
अल्मोड़ा
- गठन – 1891
- क्षेत्रफल – 3090 वर्ग किमी .
- जनसँख्या – 621,972
- तहसील – 12 (अल्मोड़ा, भिकियासैण, रानीखेत, धौलाछिना, स्यालदे, जैती, भनौली, द्वाराहाट, सोमेश्वर, चौखुटिया, सल्ट, जालली )
- विकासखंड – 11 (ताड़ीखेत, भिकियासैण, लमगडा, धौलादेवी, स्यालदे, भैसियाछाना, हवालबाग, द्वाराहाट, ताकुला, चौखुटिया, सल्ट)
बागेश्वर
- गठन – 1997
- क्षेत्रफल – 2310 वर्ग किमी.
- जनसँख्या -259,840
- तहसील – 6 (बागेश्वर, कपकोट, गरुड़, कांडा, दुगनाकुरी, कफ़लीगैर)
- विकासखंड – 3 (बागेश्वर, कपकोट, गरुड़)
चमोली
- गठन – 1960
- क्षेत्रफल – 7692 वर्ग किमी .
- जनसँख्या – 391,114
- तहसील – 10 (चमोली, कर्णप्रयाग, जोशीमठ, थराली, पोखरी, गैरसैंण, घाट, आदिबद्री, नारायण बाग , जिलासु)
- विकासखंड – 8 (कर्णप्रयाग, जोशीमठ, थराली, गैरसैण, घाट, देवाल, दशोली, नारायणबगढ़)
चम्पावत
- गठन – 1997
- क्षेत्रफल – 1955.26 वर्ग किमी .
- जनसँख्या – 259,315
- तहसील – 5 (चम्पावत, पाटी, पूर्णागिरी, लोहाघाट, बाराकोट)
- विकासखंड – 4 (चम्पावत, लोहाघाट, बाराकोट, पाटी)
देहरादून
- गठन – 1817
- क्षेत्रफल – 3088 वर्ग किमी .
- जनसँख्या – 1,695,860
- तहसीलें – 7 (चकराता, विकासनगर, देहरादून, ऋषिकेश, त्यूणी, डोईवाला, कालसी)
- विकासखंड – 6 (चकराता, रायपुर, सहसपुर, डोईवाला, कालसी, विकासनगर)
हरिद्वार
- गठन – 1988
- क्षेत्रफल – 3090 वर्ग किमी .
- जनसँख्या – 1,927,029
- तहसील – 5 (हरिद्वार, रुड़की, भगवनापुर, लक्सर)
- विकासखंड – 6 (रुड़की, भगवनापुर, लक्सर, नारसन, बहादराबाद, खानपुर)
नैनीताल
- गठन – 1891
- क्षेत्रफल – 3853 वर्ग किमी .
- जनसँख्या – 955,128
- तहसील – 8 (नैनीताल, हल्द्वानी, रामनगर, धारी, कोश्याकुटौली, बेतालघाट, लालकुँआ, कालाढूंगी
- विकासखंड – 9 (हल्द्वानी, भीमताल, रामगढ, कोटाबाग, रामनगर, बेतालघाट, ओखलकांडा, धारी, खनस्यू)
पौड़ी गढ़वाल
- गठन – 1840
- क्षेत्रफल – 5438 वर्ग किमी .
- जनसँख्या – 686,572
- तहसील – 10 (पौड़ी, श्रीनगर, थलीसैण, कोटद्वार, थुमाकोट, लैंसडाउन, यमकेश्वर, चौबटाखाल, चकीसैण, सतपुली)
- विकासखंड – 15 (कलजीखाल, पौड़ी, थलीसैण, पाबौ, रिखणीखाल, बीरोंखाल, दुगड्डा, लैंसडाउन, कोट, द्वारीखाल, यमकेश्वर, पोखड़ा, नैनिडाडा, खिर्सू, पाणाखेत)
पिथौरागढ़
- गठन – 1960
- क्षेत्रफल – 7110 वर्ग किमी .
- जनसँख्या – 485,993
- तहसील – 12 (पिथौरागढ़, धारचूला, मुनस्यारी, डीडीहाट, कनालीछीना, बेरीनाग, बंगापनी, गणाई-गंगोली, देवलथल, गंगोलीहाट, थल, तेजम)
- विकासखंड – 8 (मुनस्यारी, धारचूला, बेरीनाग, डीडीहाट, कनालीछीना, गंगोलीहाट, पिथौरागढ़, मूनाकोट)
रुद्रप्रयाग
- गठन – 1997
- क्षेत्रफल – 1984 वर्ग किमी .
- जनसँख्या – 236,857
- तहसील – 4 (ऊखीमठ, जखोली, रुद्रप्रयाग, बासुकेदार)
- विकासखंड – 3 (ऊखीमठ, अगस्त्यमुनि, जखोली)
टिहरी गढ़वाल
- गठन – 1949
- क्षेत्रफल – 4085 वर्ग किमी .
- जनसँख्या – 616,409
- तहसील – 14 (टिहरी, नरेन्द्र नगर, प्रतापनगर, देवप्रयाग, घनसाली, जाखणीधार, धनोल्टी, कांडीसौड़, गजा, नैनाबाग़, कीर्तिनगर, पावकी देवी, बालगंगा ,मदन नेगी)
- विकासखंड – 10 (टिहरी, चम्बा, प्रतापनगर, जौनपुर, नरेन्द्रनगर, देवप्रयाग, कीर्तिनगर, घनसाली, जाखाणीधार, धौलधार)
उधम सिंह नगर
- गठन – 1995
- क्षेत्रफल – 2912 वर्ग किमी .
- जनसँख्या – 1,648,367
- तहसील – 9 (काशीपुर, गदरपुर, जसपुर, खटीमा, किच्छा, सितारगंज, बाजपुर, रुद्रपुर, ननकमत्ता)
- विकासखंड – 7 (जसपुर, खटीमा, सितारगंज, काशीपुर, रुद्रपुर, बाजपुर, गदरपुर)
उत्तरकाशी
- गठन – 1960
- क्षेत्रफल – 8016 वर्ग किमी .
- जनसँख्या – 329,686
- तहसील – 6 (भटवाड़ी, डुंडा, पुरोला, मोरी, चिन्यालीसैड़, बड़कोट)
- विकासखंड – 8 (भटवाड़ी, डुंडा, पुरोला, मोरी, चिन्यालीसैड़, नौगाव, धौंतरी, जोशियारा)
उत्तराखण्ड भौगोलिक विभाजन
उत्तराखण्ड का भूगोल एवं भौगोलिक विभाजन – Geography and geographical division of Uttarakhand
गंगा का मैदानी क्षेत्र
- दक्षिण हरिद्वार का गंगा का तटीय क्षेत्र
तराई क्षेत्र
- हरिद्वार में गंगा के मैदान के तुरन्त उत्तर का क्षेत्र
- पौड़ी गढ़वाल व नैनीताल के दक्षिणी क्षेत्र
- उधम सिंह नगर
- चौड़ाई – 20 से 30 किमी
- इस क्षेत्र में पातालतोड़ कुएं (Artision Wells) पाये जाते हैं।
भाबर क्षेत्र
- तराई क्षेत्र के तुरन्त उत्तर तथा शिवालिक की पहाड़ियों के दक्षिण 10 से 12 कीमी चौड़े क्षेत्र को भाबर कहते हैं।
- इस क्षेत्र की भूमि उबड़-खाबड़ और मिट्टी कंकड़, पत्थर तथा मोटे बालू से युक्त होती है।
- इस क्षेत्र का निर्माण प्लीस्टोनीन युग का माना जाता है।
- इस क्षेत्र की मिट्टी कृषि के लिए अनउपयुक्त है।
शिवालिक क्षेत्र
- भाबर के उत्तर में स्थित पहाड़ियो को शिवालिक कहा जाता है।
- इसे वाह्य हिमालय या हिमालय का पाद भी कहा जाता है।
- इसकी चोटियों की ऊंचाई 700 से 1200 मीटर के बीच है।
- यह श्रेणी हिमालय का सबसे नवीन भाग है।
- इसका निर्माण काल मायोसीन से निम्न प्लाइस्टोसीन तक माना जाता है।
दून क्षेत्र (द्वार)
- शिवालिक तथा मध्य हिमालय के बीच का क्षेत्र
- चौड़ाई- 24 से 32 कीमी, ऊचाई- 350 से 750 मी.
- देहरा (देहरादून), कोठारी व चौखम (पौड़ी), पतली व कोटा (नैनीताल) आदी प्रमुख दून हैं।
लघु (मध्य) हिमालयी क्षेत्र
- यह पर्वत श्रेणी शिवालिक के उत्तर तथा वृहत हिमालय के दक्षिण चम्पावत, नैनीताल, अल्मोड़ा, पौड़ी, चमोली, रूद्रप्रयाग, टिहरी, उत्तरकाशी तथा देहरादून आदी 9 जिलो में विस्तृत है।
- ऊंचाई – 1200 से 4500 मी.
- लघु हिमालय के अर्न्तगत चमोली, पौड़ी तथा अल्मोड़ा जिलो के मध्ल फैले दूधातोली श्रृंखला को उत्तराखण्ड का पामीर कहा जाता है।
- इस क्षेत्र में शीतोष्ण कटिबंधीय सदाबहार प्रकार के कोणधारी सघन वन मिलते है।
वृहत (उच्च) हिमालयी क्षेत्र
- यह क्षेत्र लघु हिमालय के उत्तर व ट्रांस हिमालय के दक्षिण में स्थित है
- ऊंचाई – 4500 से 7817 मी.
वृहत हिमालय की प्रमुख चोटियां
- नंदादेवी (चमोली) – 7817 मी.
- कामेट (चमोली) – 7756 मी.
- नंदादेवी पूर्वी (चमोली-पिथौरागढ़) – 7434 मी.
- माणा (चमोली) – 7272 मी.
- बद्रीनाथ (चमोली) -7140 मी.
- पंचाचूली (पिथौरागढ़) – 6904 मी.
- श्रीकंठ (उत्तरकाशी) – 6728 मी.
- नन्दाकोट (चमोली-पिथौरागढ़) – 6861 मी.
- नंदाधुगटी (चमोली) – 6309 मी.
- गंधमाधन (चमोली) – 6984 मी.
- त्रिसूल (चमोली) – 7120 मी.
ट्रांस हिमालयी क्षेत्र
- यह महाहिमालय के उत्तर में स्थित है।
- इसका कुछ भाग भारत में और कुछ चीन में है।
- ऊंचाई – 2500 से 3500 मी.
- इस क्षेत्र की पर्वत श्रेणीयो को जैक्सर श्रेणी कहा जाता है।
उत्तराखंड का इतिहास
उत्तराखंड के इतिहास को तीन भागो में बांटा गया है |
- प्रागैतिहासिक काल
- आद्यएतिहासिक काल
- ऐतिहासिक काल ( प्राचीन काल , मध्य काल , आधुनिक काल )
प्रागैतिहासिक काल
प्रागैतिहासिक काल के बारे में जानकारी हमें पाषाण कालीन उपकरण , गुफाओ , शैल चित्रों , कंकाल ,धातु उपकरण आदि से मिलती है | इस काल के कुछ प्रमुख साक्ष्य निम्नलिखित है :
- लाखु गुफा – लाखू गुफा अल्मोरा के बाड़ेछीना में स्थित है इसकी खोज 1963 में की गयी यहाँ से मानव व पशुओ के चित्र प्राप्त हुए है जिनमे मानव को नृत्य करते दिखाया गया है तथा चित्रों को रंगों से भी सजाया गया है |
- ग्वारख्या गुफा – ग्वारख्या गुफा चमोली में अलकनंदा नदी के किनारे डुग्री गाँव में स्थित है यहाँ से मानव , भेड़ , लोमड़ी , बारहसिंगा के रंगीन चित्र मिले है |
- मलारी गाँव – चमोली जिले में स्थित मलारी गाँव से गढ़वाल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने सन 2002 में हजारो वर्ष पुराने नर कंकाल , मिट्टी के बर्तन तथा एक 5.2 किलो का सोने का मुखौटे की खोज की | यहाँ से प्राप्त मिट्टी के बर्तन पकिस्तान की स्वात घाटी के सिल्प के समान है |
- किमनी गाँव – चमोली जिले में थराली के पास स्थित किमनी गाँव से हथियार व पशुओ के शैल चित्र मिले है
- ल्वेथाप – अल्मोड़ा के ल्वेथाप से शैलचित्र प्राप्त हुए है जिनमे मानव को शिकार करते और हाथ में हाथ डालकर नृत्य करते दिखाया गया है |
- बनकोट – पिथोरागढ़ के बनकोट से 8 ताम्र मानव आकृतियाँ मिली है |
- फलसीमा – अल्मोड़ा जिले के फलसीमा से योग तथा नृत्य मुद्रा वाली मानव आकृतियाँ मिली है |
- हुडली – उत्तरकाशी के हुडली से नीले रंग से रंगर गए शैलचित्र मिले है |
- पेटशाल – अल्मोड़ा के पेटशाल से कत्थई रंग की मानव आकृतियाँ मिली है |
आद्यऐतिहासिक काल
- आद्यऐतिहासिक काल को पौराणिक काल भी कहा जाता है इस काल के बारे में जानकारी विभिन्न धार्मिक ग्रंथो से मिलती है | इस काल का विस्तार चतुर्थ शताब्दी से ऐतिहासिक काल तक माना जाता है
- उत्तराखंड का प्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है जिसमे इसे देवभूमि एवं मनीषियों की पुण्य भूमि कहा गया है
- ऐतरेव ब्राहमण में इस क्षेत्र लिए उत्तर कुरु शब्द का प्रयोग किया गया है
- स्कन्दपुराण में 5 हिमालयी खंडो (केदारखंड , मानसखंड , नेपाल , जालंधर तथा कश्मीर ) का उल्लेख है जिनमे से दो केदारखंड (गढ़वाल ) तथा मानसखंड (कुमाऊ ) उत्तराखंड में स्थित है |
- पुराणों में केदारखंड व मानसखंड के संयुक्त क्षेत्र के लिए उत्तर-खंड, खसदेश एवं ब्रह्मपुर आदि नामो का प्रयोग किया गया है
- बौध साहित्य के पाली भाषा वाले ग्रंथो में उत्तराखंड के लिए हिमवंत शब्द प्रयुक्त किया गया है |
गढ़वाल क्षेत्र
- गढ़वाल को पहले बद्रिकाश्रम क्षेत्र, स्वर्गभूमि , तपोभूमि आदि नामो से जाना जाता था लेकिन बाद में 1515 ई . के आसपास पवार शासक अजयपाल द्वारा यहाँ के 52 गढ़ों को जीत लेने के बाद इसका नाम गढ़वाल हो गया|
- ऋग्वेद के अनुसार यहाँ के प्राण नामक गाँव में सप्त ऋषियों ने प्रलय के बाद अपने प्राणों की रक्षा की|
- यहाँ के अल्कापुरी ( कुबेर की राजधानी ) नमक स्थान को आदि पूर्वज मनु का निवास स्थल कहा जाता है |
- इस क्षेत्र के बदरीनाथ के पास स्थित गणेश , नारद , मुचकुंद , व्यास एवं स्कन्द आदि गुफाओ में वैदिक ग्रंथो की रचना की गयी थी |
- गढ़वाल क्षेत्र के देवप्रयाग के सितोनस्यु पट्टी में सीता जी पृथ्वी में समायी थी इसी कारण यहाँ (मनसार ) में प्रतिवर्ष मेला लगता है |
- रामायण कालीन बाणासुर की राजधानी ज्योतिश्पुर ( जोशीमठ ) थी |
- पुलिंद रजा सुबाहु की राजधानी श्रीनगर थी |
- प्राचीन काल में इस क्षेत्र में कण्वाश्रम व बद्रिकाश्रम नामक दो विद्यापीठ थे कण्वाश्रम दुष्यंत व सकुन्तला के प्रेम प्रसंग के कारण प्रशिद्ध है इसी आश्रम में सम्राट भरत का जन्म हुआ था जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा |
- कण्वाश्रम मालिनी नदी के तट पर स्थित है महाकवि काली दास ने अभिज्ञान सकुंतलम की रचना कण्वाश्रम में ही की थी वर्तमान में इस स्थान की चौकाघाट कहा जाता है |
कुमाऊँ क्षेत्र
- पौराणिक ग्रंथो के अनुसार चम्पावत के पास में स्थित कान्तेश्वर पर्वत के नाम पर इसका नाम कुमाऊँ पड़ा |
- कुमाऊँ का सर्वाधिक उल्लेख स्कंद्पुरण के मानसखंड में मिलता है
- ब्रह्म एवं वायु पुराण के अनुसार यहाँ किरात , किन्नर , यक्ष , गन्धर्व , नाग आदि जातियां निवास करती थी , अल्मोड़ा का जाखन देवी मंदिर यक्षो के निवास की पुष्टि करता है |
- किरातो के वंशज अस्कोट एवं डोडीहाट नामक स्थान में निवास करते है |
प्रमुख लेख
- देहरादून के कालसी नामक स्थान में अशोक द्वारा 257 ई . पू. में पाली भाषा में स्थापित अभिलेख है , कालसी अभिलेख में यहाँ के निवासियों के लिए पुलिंद तथा इस क्षेत्र के लिए आपरांत शब्द का प्रयोग किया गया है |
- देहरादून के लाखामंडल से राजकुमारी इश्वरा का शिलालेख मिला है
ऐतिहासिक काल
- ऐतिहासिक काल को तीन भागो में बांटा जा सकता है
- प्राचीन काल
- मध्य काल
- आधुनिक काल
प्राचीन काल ( Ancient Period )
- प्राचीन कल में उत्तराखंड पर अनेक जातियों ने शासन किया जिनमे से कुछ प्रमुख निम्नलिखित है
कुणिन्द शासक –
- कुणिन्द उत्तराखंड पर शासन करने वाली पहली राजनैतिक शक्ति थी |
- अशोक के कालसी अभिलेख से ज्ञात होता है की कुणिन्द प्रारंभ में मौर्यों के अधीन थे |
- कुणिन्द वंश का सबसे शक्तिशाली राजा अमोधभूति था |
- अमोधभूति की मृत्यु के बाद उत्तराखंड के मैदानी भागो पर शको ने अधिकार कर लिया , शको के बाद तराई वाले भागो में कुषाणों ने अधिकार कर लिया |
- उत्तराखंड में यौधेयो के शाशन के भी प्रमाण मिलते है इनकी मुद्राए जौनसार बाबर तथा लेंसडाउन ( पौड़ी ) से मिली है |
- ‘ बाडवाला यज्ञ वेदिका ‘ का निर्माण शीलवर्मन नामक राजा ने किया था , शील वर्मन को कुछ विद्वान कुणिन्द व कुछ यौधेय मानते है |
कर्तपुर राज्य –
- कर्तपुर राज्य के संस्थापक भी कुणिन्द ही थे कर्तपुर में उत्तराखंड , हिमांचल प्रदेश तथा रोहिलखंड का उत्तरी भाग सामिल था |
- कर्तपुर के कुणिन्दो को पराजित कर नागो ने उत्तराखंड पर अपना अधिकार कर लिया |
- नागो के बाड़ कन्नोज के मौखरियो ने उत्तराखंड पर शासन किया |
- मौखरी वंश का अंतिम शासक गृह्वर्मा था हर्षवर्धन ने इसकी हत्या करके शासन को अपने हाथ में ले लिया |
- हर्षवर्धन के शासन काल में चीनी यात्री व्हेनसांग उत्तराखंड भ्रमण पर आया था |
कार्तिकेयपुर राजवंश –
- हर्ष की मृत्यु के बाद उत्तराखंड पर अनेक छोटी – छोटी शक्यियो ने शासन किया , इसके पश्चात 700 ई . में कर्तिकेयपुर राजवंश की स्थापना हुइ , इस वंश के तीन से अधिक परिवारों ने उत्तराखंड पर 700 ई . से 1030 ई. तक लगभग 300 साल तक शासन किया |
- इस राजवंश को उत्तराखंड का प्रथम ऐतिहासिक राजवंश कहा जाता है |
- प्रारंभ में कर्तिकेयपुर राजवंश की राजधानी जोशीमठ (चमोली ) के समीप कर्तिकेयपुर नामक स्थान पर थी बाद में राजधानी बैजनाथ (बागेश्वर ) बनायीं गयी |
- इस वंस का प्रथम शासक बसंतदेव था बसंतदेव के बाद के राजाओ के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलाती है इसके बाद खर्परदेव के शासन के बारे में जानकारी मिलती है खर्परदेव कन्नौज के राजा यशोवर्मन का समकालीन था इसके बाद इसका पुत्र कल्याण राजा बना , खर्परदेव वंश का अंतिम शासक त्रिभुवन राज था |
- नालंदा अभिलेख में बंगाल के पाल शासक धर्मपाल द्वारा गढ़वाल पर आक्रमण करने की जानकारी मिलती है इसी आक्रमण के बाद कार्तिकेय राजवंश में खर्परदेव वंश के स्थान पर निम्बर वंश की स्थापना हुई , निम्बर ने जागेश्वर में विमानों का निर्माण करवाया था
- निम्बर के बाद उसका पुत्र इष्टगण शासक बना उसने समस्त उत्तराखंड को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया था जागेश्वर में नवदुर्गा , महिषमर्दिनी , लकुलीश तथा नटराज मंदिरों का निर्माण कराया |
- इष्टगण के बाद उसका पुत्र ललित्शूर देव शासक बना तथा ललित्शूर देव के बाद उसका पुत्र भूदेव शासक बना इसने बौध धर्मं का विरोध किया तथा बैजनाथ मंदिर निर्माण में सहयोग दिया |
- कर्तिकेयपुर राजवंश में सलोड़ादित्य के पुत्र इच्छरदेव ने सलोड़ादित्य वंश की स्थापना की
- कर्तिकेयपुर शासनकाल में आदि गुरु शंकराचार्य उत्तराखंड आये उन्होंने बद्रीनाथ व केदारनाथ मंदिरों का पुनरुद्धार कराया | सन 820 ई . में केदारनाथ में उन्होंने अपने प्राणों का त्याग किया |
- कर्तिकेयपुर शासको की राजभाषा संस्कृत तथा लोकभाषा पाली थी |
मध्य काल (Medieval Period)
- मध्यकाल के इतिहास में हम कत्यूरी शासन , चन्द वंश तथा गढ़वाल के परमार (पवांर ) वंश के बारे में अध्ययन करेंगे |
कत्यूरी वंश –
- मध्यकाल में कुमाऊं में कत्यूरियों का शासन था इसके बारे में जानकारी हमें स्थानीय लोकगाथाओं व जागर से मिलती है कर्तिकेयपुर वंश के बाद कुमाऊं में कत्यूरियों का शासन हुआ |
- सन् 740 ई. से 1000 ई. तक गढ़वाल व कुमाऊं पर कत्यूरी वंश के तीन परिवारों का शासन रहा , तथा इनकी राजधानी कर्तिकेयपुर (जोशीमठ) थी|
- आसंतिदेव ने कत्यूरी राज्य में आसंतिदेव वंश की स्थापना की और अपनी राजधानी जोशीमठ से रणचुलाकोट में स्थापित की |
- कत्यूरी वंश का अंतिम शासक ब्रह्मदेव था यह एक अत्याचारी शासक था जागरो में इसे वीरमदेव कहा गया है|
- जियारानी की लोकगाथा के अनुसार 1398 में तैमूर लंग ने हरिद्वार पर आक्रमण किया और ब्रह्मदेव ने उसका सामना किया और इसी आक्रमण के बाद कत्यूरी वंश का अंत हो गया|
- 1191 में पश्चिमी नेपाल के राजा अशोकचल्ल ने कत्यूरी राज्य पर आक्रमण कर उसके कुछ भाग पर कब्ज़ा कर लिया|
- 1223 ई. में नेपाल के शासक काचल्देव ने कुमाऊॅ पर आक्रमण कर लिया और कत्यूरी शासन को अपने अधिकार में ले लिया।
कुमाऊं का चन्द वंश –
- कुमाऊं में चन्द वंश का संस्थापक सोमचंद था जो 700 ई. में गद्दी पर बैठा था|
- कुमाऊं में चन्द और कत्यूरी प्रारम्भ में समकालीन थे और उनमें सत्ता के लिए संघर्ष चला जिसमें अन्त में चन्द विजयी रहे। चन्दों ने चम्पावत को अपनी राजधानी बनाया। प्रारंभ में चम्पावत के आसपास के क्षेत्र ही इनके अधीन थे लेकिन बाड़ में वर्तमान का नैनीताल, बागेश्वर, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा आदि क्षेत्र इनके अधीन हो गए|
- राज्य के विस्तृत हो जाने के कारण भीष्मचंद ने राजधानी चम्पावत से अल्मोड़ा स्थान्तरित कर दी जो कल्यांचंद तृतीय के समय (1560) में बनकर पूर्ण हुआ|
- इस वंश का सबसे शक्तिशाली राजा गरुड़ चन्द था|
- कल्याण चन्द चतुर्थ के समय में कुमाऊं पर रोहिल्लो का आक्रमण हुआ| तथा प्रशिद्ध कवी ‘शिव’ ने कल्याण चंद्रौदयम की रचना की|
- चन्द शासन काल में ही कुमाऊं में ग्राम प्रधान की नियुक्ति तथा भूमि निर्धारण की प्रथा प्रारंभ हुई|
- चन्द राजाओ का राज्य चिन्ह गाय थी|
- 1790 ई. में नेपाल के गोरखाओं ने चन्द राजा महेंद्र चन्द को हवालबाग के युद्ध में पराजित कर कुमाऊं पर अपना अधिकार कर लिया , इसके सांथ ही कुमाऊं में चन्द राजवंश का अंत हो गया|
गढ़वाल का परमार (पंवार) राजवंश –
- 9 वीं शताब्दी तक गढ़वाल में 54 छोटे-बड़े ठकुरी शासको का शासन था, इनमे सबसे शक्तिशाली चांदपुर गड का राजा भानुप्रताप था , 887 ई. में धार (गुजरात) का शासक कनकपाल तीर्थाटन पर आया, भानुप्रताप ने इसका स्वागत किया और अपनी बेटी का विवाह उसके साथ कर दिया।
- कनकपाल द्वारा 888 ई. में चाँदपुरगढ़ (चमोली) में परमार वंश की नींव रखीं, 888 ई. से 1949 ई. तक परमार वंश में कुल 60 राजा हुए।
- इस वंश के राजा प्रारंभ में कर्तिकेयपुर राजाओ के शामंत रहे लेकिन बाड़ में स्वतंत्र राजनेतिक शक्ति के रूप में स्थापित हो गए|
- इस वंश के 37वें राजा अजयपाल ने सभी गढ़पतियों को जीतकर गढ़वाल भूमि का एकीकरण किया। इसने अपनी राजधानी चांदपुर गढ को पहले देवलगढ़ फिर 1517 ई. में श्रीनगर में स्थापित किया।
- परमार शासकों को लोदी वंश के शासक बहलोद लोदी ने शाह की उपाधि से नवाजा , सर्वप्रथम बलभद्र शाह ने अपने नाम के आगे शाह जोड़ा|
- 1636 ई. में मुग़ल सेनापति नवाजतखां ने दून-घाटी पर हमला कर दिया ओर उस समय की गढ़वाल राज्य की संरक्षित महारानी कर्णावती ने अपनी वीरता से मुग़ल सैनिको को पकडवाकर उनके नाक कटवा दिए , इसी घटना के बाद महारानी कर्णावती को “नाककटी रानी” के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।
- परमार राजा प्रथ्विपति शाह ने मुग़ल शहजादा दाराशिकोह के पुत्र शुलेमान शिकोह को आश्रय दिया था इस बात से औरेंजेब नाराज हो गया था|
- 1790 ई. में कुमाऊॅ के चन्दो को पराजित कर, 1791 ई. में गढ़वाल पर भी आक्रमण किया लेकिन पराजित हो गए। गढ़वाल के राजा ने गोरखाओं से संधि के तहत 25000 रूपये का वार्षिक कर लगाया और वचन लिया की ये पुन: गढ़वाल पर आक्रमण नहीं करेंगे , लेकिन 1803 ई. में अमर सिंह थापा और हस्तीदल चौतरिया के नेतृत्व में गौरखाओ ने भूकम से ग्रस्त गढ़वाल पर आक्रमण कर उनके काफी भाग पर कब्ज़ा कर लिया।
- 14 मई 1804 को देहरादून के खुड़बुड़ा मैदान में गोरखाओ से हुए युद्ध में प्रधुमन्न शाह की मौत हो गई , इस प्रकार सम्पूर्ण गढ़वाल और कुमाऊॅ में नेपाली गोरखाओं का अधिकार हो गया।
- प्रधुमन्न शाह के एक पुत्र कुंवर प्रीतमशाह को गोरखाओं ने बंदी बनाकर काठमांडू भेज दिया, जबकि दुसरे पुत्र सुदर्शनशाह हरिद्वार में रहकर स्वतंत्र होने का प्रयास करते रहे और उनकी मांग पर अंग्रेज गवर्नर जनरल लार्ड हेस्टिंग्ज ने अक्तूबर 1814 में गोरखा के विरुद्ध अंग्रेज सेना भेजी और 1815 को गढ़वाल को स्वतंत्र कराया , लेकिन अंग्रेजों को लड़ाई का खर्च न दे सकने के कारण गढ़वाल नरेश को समझौते में अपना राज्य अंग्रेजों को देना पड़ा।
- शुदर्शन शाह ने 28 दिसम्बर 1815 को अपनी राजधानी श्रीनगर से टिहरी गढ़वाल स्थापित की। टिहरी राज्य पर राज करते रहे तथा भारत में विलय के बाद टिहरी राज्य को 1 अगस्त 1949 को उत्तर प्रदेश का एक जनपद बना दिया गया।
- पंवार शासको के काल में अनेक काव्य रचे गए जिनमे सबसे प्राचीन मनोदय काव्य है जिसकी रचना भरत कवि ने की थी|
आधुनिक काल (Modern Period)
- उत्तराखंड के आधुनिक काल के इतिहास में हम गोरखा शासन तथा ब्रिटिश शासन के बारे में अध्ययन करेंगे|
गोरखा शासन –
- गोरखा नेपाल के थे , गोरखाओ ने चन्द राजा को पराजित कर 1790 में अल्मोड़ा पर अधिकार कर लिया|
- कुमाऊॅ पर अधिकार करने के बाद 1791 में गढ़वाल पर आक्रमण किया लेकिन पराजित हो गये और फरवरी 1803 को संधि के विरुद्ध जाकर गोरखाओं ने अमरसिंह थापा और हस्तीदल चौतारिया के नेतृत्व में पुन: गढ़वाल पर आक्रमण किया और सफल हुए।
- 14 मई 1804 को गढ़वाल नरेश प्रधुम्न्ना शाह और गोरखों के बीच देहरादून के खुडबुडा मैदान में युद्ध हुआ और गढ़वाल नरेश शहीद हो गए|
- 1814 ई. में गढ़वाल में अंग्रेजो के साथ युद्ध में पराजित हो कर गढ़वाल राज मुक्त हो गया, अब केवल कुमाऊॅ में गोरखाओं का शासन रह गया|
- कर्नल निकोल्स और कर्नल गार्डनर ने अप्रैल 1815 में कुमाऊॅ के अल्मोड़ा को व जनरल ऑक्टरलोनी ने 15, मई 1815 को वीर गोरखा सरदार अमर सिंह थापा से मालॉव का किला जीत लिया।
- 27 अप्रैल 1815 को कर्नल गार्डनर तथा गोरखा शासक बमशाह के बीच हुई संधि के तहत कुमाऊॅ की सत्ता अंग्रेजो को सौपी दी गई।
- कुमाऊॅ व गढ़वाल में गोरखाओं का शासन काल क्रमश: 25 और 10.5 वर्षों तक रहा।जो बहुत ही अत्याचार पूर्ण था इस अत्चयारी शासन को गोरख्याली कहा जाता है|
ब्रिटिश शासन –
- अप्रैल 1815 तक कुमाऊॅ पर अधिकार करने के बाद अंग्रेजो ने टिहरी को छोड़ कर अन्य सभी क्षेत्रों को नॉन रेगुलेशन प्रांत बनाकर उत्तर पूर्वी प्रान्त का भाग बना दिया, और इस क्षेत्र का प्रथम कमिश्नर कर्नल गार्डनर को नियुक्त किया।
- कुछ समय बाड़ कुमाऊँ जनपद का गठन किया गया और देहरादून को 1817 में सहारनपुर जनपद में सामिल किया गया|
- 1840 में ब्रिटिश गढ़वाल के मुख्यालय को श्रीनगर से हटाकर पौढ़ी लाया गया व पौढ़ी गढ़वाल नामक नये जनपद का गठन किया।
- 1854 में कुमाऊँ मंडल का मुख्यालय नैनीताल बनाया गया
- 1891 में कुमाऊं को अल्मोड़ा व नैनीताल नामक दो जिलो में बाँट दिया गया, और स्वतंत्रता तक कुमाऊॅ में केवल 3 ही ज़िले थे (अल्मोड़ा, नैनीताल, पौढ़ी गढ़वाल) और टिहरी गढ़वाल एक रियासत के रूप में थी
- 1891 में उत्तराखंड से नॉन रेगुलेशन प्रान्त सिस्टम को समाप्त कर दिया गया|
- 1902 में सयुंक्त प्रान्त आगरा एवं अवध का गठन हुआ और उत्तराखंड को इसमें सामिल कर दिया गया|
- 1904 में नैनीताल गजेटियर में उत्तराखंड को हिल स्टेट का नाम दिया गया|
स्वतंत्रता आन्दोलन में उत्तराखंड की भूमिका
1857 की क्रांति
- 1857 में चम्पावत जिले के बिसुंग गाँव के कालू सिंह महरा ने कुमाऊॅ क्षेत्र में क्रांतिवीर संगठन बनाकर अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन चलाया। उन्हें उत्तराखंड का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी होने का गौरव भी प्राप्त है|
- कुमाऊॅ क्षेत्र के हल्द्वानी में 17 सितम्बर 1857 को एक हजार से अधिक क्रांतिकारियों ने अधिकार कर लिया|
1857 के बाद आन्दोलन
- 1870 ई. में अल्मोड़ा में डिबेटिंग क्लब की स्थापना की और 1871 से अल्मोड़ा अखबार की शुरुआत हुई|अल्मोड़ा अकबार 1918में बंद हो गया इसके बाड़ 1918 से बद्रीदत्त पाण्डेय ने शक्ति नामक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया|
- 1886 में ज्वालादत्त जोशी ने कांग्रेस के कलकत्ता में आयोजित सम्मलेन में भाग लिया|
- पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त ने 1903 में हैप्पी क्लब नाम की एक संस्था बनायीं |
- 1912 में अल्मोड़ा कांग्रेस की स्थापना की गयी|
- तिलक और बेसेंट द्वारा 1914 चलाये गए होम रूल लीग आन्दोलन से प्रेरित होकर विक्टर मोहन जोशी, बद्रीनाथ पाण्डेय , चिरंजीलाल और हेमचंद ने उत्तराखंड में होमरुल लीग आन्दोलन चलाया|
- 1916 में गोविन्द बल्लभ पन्त, हरगोविंद पन्त , बद्रीदत्त पाण्डेय आदि नेताओ के प्रयास से कुमाऊं परिषद का गठन हुआ, 1926 में कुमाऊं परिषद का विलय कांग्रेस में हो गया|
- बैरिस्टर मुकुंदीलाल और अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के प्रयासों से 1918 में गढ़वाल कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ, इन दोनों नेताओ ने 1919 के अमृतसर कांग्रेस में भी भाग लिया|
- 1920 में गांधीजी द्वारा शुरू किए गये असहयोग आन्दोलन में कई लोगो ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया और कुमाऊ मण्डल के हजारों स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा बागेश्वर के सरयू नदी के तट पर कुली-बेगार न करने की शपथ ली और इससे संबंधीत रजिस्ट्री को नदी में बहा दिया गया|
- 23 अप्रैल 1930 को पेशावर में 2/18 गढ़वाल रायफल के सैनिक वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली के नेतृत्व में निहत्थे अफगान स्वतंत्रता सेनानियों पर गोली चलने से इंकार कर दिया था, यह घटना ‘पेशावर कांड’ के नाम से प्रसिद्ध है।, पेशावर कांड से प्रभावित होकर मोतीलाल नेहरु ने संपूर्ण देश में गढ़वाल दिवस मानाने की घोषणा की|
भारत छोड़ो आन्दोलन में उत्तराखंड की भूमिका
- अल्मोड़ा के धामगो में 25 अगस्त 1942 को सेना व जनता के बीच पत्थर व गोलियों का युद्ध हुआ|
- अल्मोड़ा के सल्ट में 5 सितम्बर 1942 खुमाड़ नामक स्थान पर सेना ने जनता पर गोलिया चला दी इसमें कई लोग शहीद हुए , इस घटना के कारण महात्मा गाँधी ने सल्ट को कुमाऊं का बारदोली कहा , सल्ट के खुमाड़ में प्रतिवर्ष 5 सितम्बर को शहीद दिवस मनाया जाता है|
स्वंत्रता आन्दोलन में उत्तराखंड की महिलाओ की भूमिका
- उत्तराखंड से स्वंत्रता आन्दोलन में भाग लेने वाली प्रमुख महिलाये कुंती वर्मा , पद्मा जोशी , दुर्गावती पन्त ,जानकी देवी ,शकुंतला देवी , भिवेडी देवी, बिशनी देवी शाह आदि थी
स्वंत्रता आन्दोलन के दौरान उत्तराखंड में प्रकाशित प्रमुका पत्र - पत्रिकाएं
- अल्मोड़ा अकबार – अल्मोड़ा अकबार 1871 में अल्मोड़ा से प्रकाशित हुआ.
- शक्ति – 1918 में अल्मोड़ा अकबार के बंद हो जाने के बाद बद्रीदत्त पाण्डेय ने शक्ति पत्रिका का प्रकाशन किया.
- गढ़वाली – पं गिरिजादत्त नैथानी के सम्पादकत्व में 1905 में देहरादून से प्रकाशित.
- कर्मभूमि – 1939 में भक्तदर्शन और भैरवदत्त के सम्पादकत्व में लेंसडाउन से प्रकाशित.
- युगवाणी – 1941 में देहरादून से प्रकाशित.
उत्तराखंड में हुए प्रमुख जन-आन्दोलन
कुली बेगार आन्दोलन
- अंग्रेजी शासनकाल में अंग्रेजो के सामान को एक गाँव से दुसरे गाँव तक गाँव वालो को ढोना पड़ता था तथा इसका लेखा जोखा गाँव के मुखिया के पास रजिस्टर में रहता था,जिसे बेगार रजिस्टर कहा जाता था|
- 13-14 जनवरी 1921 को बागेश्वर में सरयू नदी के किनारे उत्तरायणी मेले में बद्रीदत्त पाण्डेय , हरगोविंद पन्त व चिरंजीलाल के नेतृत्व में लगभग 40 हजार आंदोलनकारियो ने बेगार नहीं देने का संकल्प लिया और कुली बेगार से सम्बंधित सभी रजिस्टर जला दिए और यही से इस कुप्रथा का अंत हो गया|
टिहरी राज्य आन्दोलन
- टिहरी में प्रजातान्त्रिक शासन की मांग को लेकर 20 वी शताब्दी के तीसरे दशक से ही कई जनांदोलन होने लगे थे टिहरी में 1939 में श्री देवसुमन, दौलतराम, नागेन्द्र सकलानी आदि के प्रयासों से प्रजामंडल की स्थापना हुई और आन्दोलन का विस्तार हुआ, मई 1944 में श्री देवसुमन अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल पर बैठ गये और 25 जुलाई 1944 को 84 दिन के भूख हड़ताल के बाद उनकी मृत्यु हो गई |
- 1948 में कीर्तिनगर आन्दोलन हुआ जिसमे भोलूराम और नागेन्द्र शहीद हुए|
- राजा मानवेन्द्र शाह ने 1949 में विलीनीकरण प्रपत्र पर हस्ताक्षर कर दिए और 1 अगस्त 1949 से टिहरी संयुक्त उत्तरप्रदेश का जिला बन गया।
डोला पालकी अन्दोलान
- इस आन्दोलन से पूर्व राज्य के शिल्पकारो को शादी विवाह के अवसर पर डोला पालकी में बैठेने का अधिकार नहीं था|
- जयानंद भारती द्वारा 1930 के आसपास डोला पालकी आन्दोलान चलाया गया जिसके बाद शिल्पकारो को यह अधिकार मिल गया|
कनकटा बैल बनाम भ्रष्टाचार आन्दोलन
- यह अन्दोलन भ्रष्टाचार के खिलाप था जो अल्मोड़ा के बडियार रेत (लमगड़ा) गाँव से शुरू हुआ|
कोटा खर्रा आन्दोलन
- इस आन्दोलन का उद्देश्य राज्य के तराई वाले क्षेत्रो में सीलिंग कानून को लागू कराकर भूमिहीनों को भूमि वितरण करना था|
पृथक राज्य निर्माण के लिए आन्दोलन
- उत्तराखंड को पृथक राज्य बनाने की मांग सर्वप्रथम 5-6 मई 1938 को श्रीनगर (गढ़वाल) में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेसन में उठाई गयी.
- श्रीदेव सुमन ने पृथक राज्य के निर्माण हेतु 1938 में दिल्ली में गढ़देश सेवा संघ नाम का संगठन बनाया, जिसका नाम बाद में हिमालय सेवा संघ कर दिया गया.
- 1950 में पर्वतीय विकास जन समिति नामक संगठन बनाया गया जिसका उद्देश्य उत्तराखंड और हिमांचल प्रदेश को मिलकर एक हिमालयी राज्य बनाना था.
- 24 व 25 जून 1967 को रामनगर में पर्वतीय राज्य परिषद का गठन किया गया.
- 1969 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पर्वतीय विकास परिषद का गठन किया गया.
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव पी. सी. जोशी ने 3 अक्टूबर 1970 को कुमाऊं राष्ट्रीय मोर्चा का गठन किया.
- 1969 में नैनीताल में उत्तरांचल परिषद का गठन किया गया, और इस परिषद के सदस्यों ने 1972 में दिल्ली के वोट क्लब पर धरना दिया.
- 1976 में उत्तराखंड युवा परिषद का गठन किया गया.
- 1979 में त्रेपन सिंह नेगी द्वारा उत्तराचल राज्य परिषद का गठन किया गया.
- 25 जुलाई 1979 में मसूरी में उत्तराखंड क्रांति दल का गठन किया गया तथा इसका पहला अध्यक्ष कुमाऊं विश्विद्यालय के कुलपति डॉ. देवीदत्त पन्त को बनाया गया.
- उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर 1984 में आल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन ने 900 किमी की साइकिल यात्रा निकाली.
- उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर 23 अप्रैल 1987 को उत्तराखंड क्रांति दल के नेता त्रिवेन्द्र पंवार ने संसद में एक पत्र बम फेंका.
- 1988 में शोबन सिंह जीना द्वारा ‘उत्तराँचल उत्थान परिषद‘ का गठन किया गया.
- 1989 में ‘उत्तराँचल संयुक्त संघर्ष समिति‘ का गठन किया गया.
- उत्तर प्रदेश विधानसभा में राज्य निर्माण का पहला प्रस्ताव 1990 में उत्तराखंड क्रांति दल के विधायक जसवंत सिंह बिष्ट द्वारा रखा गया.
- 1992 में उत्तराखंड क्रांति दल ने एक दस्तावेज जारी कर गैरसैण को उत्तराखंड की राजधानी घोषित किया , इस दस्तावेज को उत्तराखंड क्रांति दल का पहला ब्लू प्रिंट माना जाता है.
- उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने जनवरी 1993 में रमाशंकर कौशिक की अध्यक्षता में एक समिति ( कौसिक समिति ) का गठन उत्तराखंड राज्य की संरचना और राजधानी पर विचार करने के लिए किया.
- 15 अगस्त 1996 को प्रधानमंत्री एच. डी. देवगौड़ा ने उत्तराखंड राज्य निर्माण करने की घोसणा की.
- उत्तरप्रदेश पुनर्गठन विधेयक को 27 जुलाई 2000 को लोक सभा में पेश किया गया , यह विधेयक 1 अगस्त 2000 को लोकसभा तथा 10 अगस्त 2000 को राज्यसभा में पारित किया गया और 28 अगस्त 2000 को राष्ट्रपति के. आर. नारायण ने इस विधेयक को अपनी मंजूरी दी .
- 9 नवम्बर 2000 को उत्तर प्रदेश के 13 जिलो को अलग कर देश के 27 वे तथा हिमालयी राज्यों में 11 वे राज्य के रूप में उत्तराँचल राज्य का गठन किया गया, तथा 1 जनवरी 2007 से इसका नाम उत्तराखंड हो गया.
कुमाऊं के प्रमुख किले
- लालमण्डी किला – यह किला अल्मोड़ा के पल्टन बाजार छावनी के भीतर स्थित है इस किले को राजा कल्याणचन्द ने 1563 ई. में बनवाया था. इसे फोर्ट मोयरा भी कहा जाता है|
- सिरमोही किला – यह प्राचीन किला तहसील लोहाघाट के ग्राम सिरमोही में स्थित है|
- राजबुंगा किला – यह किला चम्पावत में स्थित है इस किले को चन्दवंशीय राजा सोमचन्द ने बनवाया था|
- नैथड़ा किला – यह अल्मोड़ा जनपद के रामनगर गनाई मार्ग मासी के समीप स्थित है इसे गोरखाकालीन माना जाता है|
- मल्ला महल किला – अल्मोड़ा नगर के ठीक मध्य में स्थित इस किले में वर्तमान में कचहरी जिलाधीश कार्यालय व अन्य कई सरकारी दफ्तर हैं इसे चन्दवंशीय राजा कल्याणचन्द ने बनवाया था|
- खगमरा किला – राजा भीष्मचन्द ने अल्मोड़ा के पूर्व में स्थित इस किले का निर्माण कराया था|
- बाणासुर किला – यह किला चम्पावत जिले में लोहाघाट – देवीधुरा मार्ग पर स्थित है इसका निर्माण बाणासुर नामक दैत्य ने कराया था, स्थानीय भाषा में इसे मारकोट कहा जाता है|
- गोल्ला चौड़ – यह किला चम्पा
- जौलजीवी मेला उत्तराखंड के पिथोरागढ़ जनपद के काली एवं गौरी नदियों के संगम पर स्थित जौलजीवी नामक स्थान पर प्रतिवर्ष 14 से 19 नवम्बर तक लगता है , इस मेले की शुरुआत 1914 में हुई थी|
गढ़वाल के 52 गढ़
1. नागपुर गढ़
- स्थान – नागपुर
- सम्बंधित जाती – नाग जाती
2. कोल्लिगढ़
- स्थान – बछणस्यूं
- सम्बंधित जाती – बछवाड़ बिष्ट
3. रावडगढ़
- स्थान – बद्रीनाथ के निकट
- सम्बंधित जाती – रवाडी
4. फल्याण गढ़
- स्थान – फल्दाकोट
- सम्बंधित जाती – फल्याण जाती के ब्राह्मण
5. बांगर गढ़
- स्थान – बांगर
- सम्बंधित जाती – राणा
6. कुइली गढ़
- स्थान – कुइली
- सम्बंधित जाती – सजवाण जाती
7. भरपूर गढ़
- स्थान – भरपूर
- सम्बंधित जाती – सजवाण जाती
8. कुजणी गढ़
- स्थान – कुजणी
- सम्बंधित जाती – सजवाण जाती
9. सिल गढ़
- स्थान – सिल गढ़
- सम्बंधित जाती – सजवाण जाती
10. मुंगरा गढ़
- स्थान – रंवाई
- सम्बंधित जाती – रावत जाती
11. रैका गढ़
- स्थान – रैका
- सम्बंधित जाती – रमोला जाती
12. मौल्या गढ़
- स्थान – रमोली
- सम्बंधित जाती – रमोला जाती
13. उप्पू गढ़
- स्थान – उदयपुर
- सम्बंधित जाती – चौहान
14. नाला गढ़
- स्थान – देहरादून
15. सांकरी गढ़
- स्थान – रंवाई
- सम्बंधित जाती – राणा
16. रामी गढ़
- स्थान – शिमला
- सम्बंधित जाती – राणा
17. बिराल्टा गढ़
- स्थान – जौनपुर
- सम्बंधित जाती – रावत
18. चांदपुर गढ़
- स्थान – चांदपुर
- सम्बंधित जाती – सूर्यवंशी रजा भानु प्रताप का
19. चौंडा गढ़
- स्थान – चांदपुर
- सम्बंधित जाती – चौन्दाल
20. तोप गढ़
- स्थान – चांदपुर
- सम्बंधित जाती – तोपाल जाती
21. राणी गढ़
- स्थान – राणी गढ़ पट्टी
- सम्बंधित जाती – तोपाल
22. श्रीगुरु गढ़
- स्थान – सलाण
- सम्बंधित जाती – परिहार
23. बधाण गढ़
- स्थान – बधाण
- सम्बंधित जाती – बधाणी जाती
24. लोहबाग गढ़
- स्थान – लोहबा
- सम्बंधित जाती – नेगी
25. दशोली गढ़
- स्थान – दशोली
26. कुंडारा गढ़
- स्थान – नागपुर
- सम्बंधित जाती – कुंडारी
27. धौना गढ़
- सम्बंधित जाती – धौन्याल
28. रतन गढ़
- स्थान – कुजणी
- सम्बंधित जाती – धमादा जाती
29. एरासू गढ़
स्थान – श्रीनगर के पास
30. इडिया गढ़
स्थान – रंवाई बडकोट
सम्बंधित जाती – इडिया जाती
31. लंगूर गढ़
- स्थान – लंगूर पट्टी
32. बाग गढ़
- स्थान – गंगा सलाणा
- सम्बंधित जाती – बागूड़ी जाती
33. गढ़कोट गढ़
- स्थान – मल्ला ढांगू
- सम्बंधित जाती – बगडवाल
34. गड़ताग गढ़
- स्थान – टकनौर
- सम्बंधित जाती – भोटिया जाती
35. बनगढ़ गढ़
- स्थान – बनगढ़
36. भरदार गढ़
- स्थान – भरदार
37. चौन्दकोट गढ़
- स्थान – चौन्दकोट
- सम्बंधित जाती – चौन्दकोट जाती
38. नयाल गढ़
- स्थान – कटूलस्यूं
- सम्बंधित जाती – नयाल
39. अजमीर गढ़
- स्थान – अजमेर पट्टी
- सम्बंधित जाती – पयाल जाती
40. कांडा गढ़
- सम्बंधित जाती – रावत
41. सावली गढ़
- स्थान – सावली खाटली
42. बदलपुर गढ़
- स्थान – बदलपुर
43. संगेला गढ़
- सम्बंधित जाती – संगेला जाती
44. गुजडू गढ़
- स्थान – गुजडू
45. जौट गढ़
स्थान – जौनपुर
46. देवल गढ़
- स्थान – देवलगढ़
47. लोद गढ़
- स्थान – देवलगढ़
48. जौंलपुर गढ़
- स्थान – देवलगढ़
49. चंपा गढ़
- स्थान – देवलगढ़
50. डोडराक्वांरा गढ़
- स्थान – देवलगढ़
51. भवना गढ़
- स्थान – देवलगढ़
52. लोदन गढ़
- स्थान – देवलगढ़
उत्तराखंड की प्रमुख नदियाँ
यमुना तंत्र
- यमुना नदी उत्तरकाशी के बंदरपूंछ पर्वत पर स्थित यमुनोत्री कांठा नमक स्थान से निकालाई है ,यमुना की राज्य में लम्बाई 136 किमी. है, यमुना की प्रमुख सहायक नदियाँ निम्नलिखित है
टोंस
- यह यमुना की सबसे प्रमुख सहायक नदी है जो उत्तरकाशी में स्थित स्वर्गारोहाणी हिमनद से निकलने वाली सूपिन नदी व हिमांचल प्रदेश से आने वाली रूपिन नदी से मिलकर बनती है टोंस नदी को तमसा नदी के नाम से भी जाना जाता है , टोंस नदी कालसी में यमुना से मिलती है
- इसके अलावा यमुना की कुछ अन्य सहायक नदियां ऋषि गंगा , हनुमान गंगा , भाद्रिगाड , कमलगाड़ ,गिरी आदि है
गंगा तंत्र
- गंगा नदी को गंगा के नाम से देवप्रयाग से जाना जाता है जहाँ अलकनंदा व भागीरथी नदियाँ मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती है राज्य में देवप्रयाग के बाद गंगा की कुल लम्बाई 96 किमी है
- गंगा की प्रमुख सहायक नदियाँ निम्नलिखित है
भागीरथी
- भागीरथी नदी उत्तरकाशी में गोमुख नामक स्थान से निकलती है
- भागीरथी की प्रमुख सहायक नदियाँ रुद्रगंगा , जान्हवी , सियागंगा, भिलंगना, मिलुन गंगा , केदार गंगा आदि है
- पुरानी टिहरी (गणेश प्रयाग) में भागीरथी से भिलंगना नदी मिलती है जो खतलिंग ग्लेशियर से निकलती है , देवप्रयाग में भागीरथी से अलकनंदा नदी मिलाती है इसके बाद यह गंगा कहलाती है गोमुख से देवप्रयाग तक भागीरथी की लम्बाई 205 किमी है
अलकनंदा
- अलकनंदा नदी चमोली के सतोपंथ ग्लेशियर से निकलती है इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ सरस्वती , लक्ष्मण गंगा , विष्णु गंगा , पाताल गंगा , नंदाकिनी , पिंडर , मन्दाकिनी , कंचन गंगा , क्षीर गंगा , सोनधारा आदि है
- अलकनंदा से केशव प्रयाग (चमोली ) में सरस्वती , विष्णु प्रयाग (चमोली) में विष्णु गंगा , नंदप्रयाग (चमोली) में नंदाकिनी , कर्णप्रयाग (चमोली) में पिंडर , रुद्रप्रयाग में मन्दाकिनी तथा देवप्रयाग में भागीरथी नदी मिलती है
नयार
गंगा में नयार नदी पौड़ी के फूलचट्टी नमक स्थान पर मिलती है , नयार नदी पूर्वी व पश्चिमी नयार के मिलाने से बनती है
काली (शारदा) तंत्र
- काली नदी पिथोरागढ़ जनपद में स्थित लिपुलेख के पास में स्थित कालापानी नामक स्थान से निकलती है , काली की प्रमुख सहायक नदियाँ पूर्वी धौलीगंगा , गोरी गंगा , सरयू , लोहावती , लधिया , कुठीयान्गटी आदि है
- काली नदी से खेला नामक स्थान पर पूर्वी धौलीगंगा, जौलजीवी में गोरी जो मिलम हिमनद से निकलती है , पंचेश्वर में सरयू तथा चम्पावत में लाधिया नदी मिलती है
- सरयू नदी बागेश्वर के सरमूल नामक स्थान से निकलती है इसकी सहायक नदी गोमती, पनार, पूर्वी रामगंगा आदि है
पश्चिमी रामगंगा नदी
- पश्चिमी रामगंगा नदी दूधातोली श्रेणी से निकलती है
कोसी नदी
- कोसी नदी कौसानी की पहाड़ियों से निकलती है कुमाऊं में इसकी घाटी को धान का कटोरा कहा जाता है
दाबका नदी
- यह नैनीताल के गरमपानी नामक स्थान से निकलती है
गौला नदी
- यह नैनीताल के पहाड़पानी नामक स्थान से निकलती है
उत्तराखंड में नदियों के संगम व नदी किनारे बसे नगर
उत्तराखंड में नदियों के संगम
- विष्णु प्रयाग (चमोली ) – अलकनंदा व विष्णु गंगा
- नन्द प्रयाग (चमोली) – अलकनंदा व नंदाकिनी
- कर्ण प्रयाग (चमोली) – अलकनंदा व पिंडर
- रूद्र प्रयाग – अलकनंदा व मन्दाकिनी
- देव प्रयाग (टिहरी गढ़वाल) – अलकनंदा व भागीरथी
- गणेश प्रयाग (टिहरी गढ़वाल) – भागीरथी व भिलंगना
- केशव प्रयाग (चमोली ) – अलकनंदा व सरस्वती
- ऋषिकेश (देहरादून) – गंगा व चंद्रभागा
- जौलजीवी (पिथोरागढ़) – काली व गोरी
- कालसी (देहरादून) – यमुना व टोंस
- गंगोत्री (उत्तरकाशी) – भागीरथी व केदार गंगा
- बागेश्वर – सरयू व गोमती
नदी किनारे बसे नगर
- हरिद्वार – गंगा
- श्रीनगर (पौड़ी) – अलकनंदा
- केदारनाथ (रूद्र प्रयाग) – मन्दाकिनी
- कौसानी (बागेश्वर) – कोसी
- गोपेश्वर (चमोली) –अलकनंदा
- जोशीमठ (चमोली) – अलकनंदा
- उत्तरकाशी – भागीरथी
- टनकपुर (चम्पावत) – काली
उत्तराखंड के प्रमुख बाँध / जल विधुत परियोजनाएं
ग्लोगी जल विधुत परियोजना
- ग्लोगी जल विधुत परियोजना मसूरी के भट्टा फॉल पर स्थित है
- इसकी क्षमता 1000 मेगावाट की है
- ग्लोगी जल विधुत परियोजना उत्तराखंड को पहली जल विधुत परियोजना है इसमें 1909 से विधुत उत्पादन हो रहा है
टिहरी परियोजना
- टिहरी जल विधुत परियोजना भागीरथी तथा भिलंगना नदियों के संगम पर टिहरी में स्थित है
- वर्तमान में टिहरी बाँध एशिया का सबसे ऊंचा बाँध है जिसकी ऊंचाई 260.5 मीटर है , इसकी विशालता के कारण इसे राष्ट्र का गाँव कहा गया है
- टिहरी बाँध की कुल विधुत उत्पादन क्षमता 2400 मेगावाट है
- टिहरी बाँध की कुल जल धारण क्षमता 354 करोड़ घन मीटर है तथा इसका जलाशय 42 वर्ग किमी में फैला है जिसे स्वामी रामतीर्थ सागर के नाम से जाना जाता है
- टिहरी परियोजना को 1972 में योजना आयोग ने स्वीकृति प्रदान की और 1978 में सिंचाई विभाग द्वारा इसका निर्माण शुरू किया गया , कार्य धीमा होने के कारण 1988 में इसके निर्माण की जिम्मेदारी टिहरी जल बाँध निगम का गठन कर उसको दे दी गयी
- टिहरी बाँध का डिजाईन प्रो. जेम्स ब्रून ने तैयार किया
- टिहरी के लोगो ने विस्थापन के चलते टिहरी बाँध का विरोध भी किया , बाँध के विरोध के लिए 1978 में टिहरी में बाँध विरोधी समिती का गठन किया गया
विष्णु प्रयाग जल विधुत परियोजना
- विष्णु प्रयाग जल विधुत परियोजना चमोली जिले में अलकनंदा नदी पर स्थित है
- इसकी कुल क्षमता 650 मेगावाट है
धौलीगंगा परियोजना
- धौलीगंगा परियोजना पिथोरागढ़ जनपद के धारचूला में धौलीगंगा नदी पर स्थित है
- इसकी कुल क्षमता 280 मेगावाट की है जिसे 2005 में शुरू किया गया
- इस परियोजना में कट ऑफ वाल तकनीक का प्रयोग किया गया है
पंचेश्वर बाँध परियोजना
- पंचेश्वर बांध परियोजना उत्तराखंड के चम्पावत जिले में बनने वाली एक जल विधुत परियोजना है पंचेश्वर की दिल्ली से दूरी 455 किमी तथा अल्मोड़ा , पिथोरागढ़ व चम्पावत से दूरियां क्रमश 150 ,92, 44 किमी है |
- पंचेश्वर में महाकाली नदी के साथ चार अन्य नदियों गोरीगंगा, धौली, सरयू और रामगंगा का संगम होता है. पंचेश्वर बांध इसे बांधने की विशाल परियोजना है. कुल 5040 मेगावॉट की यह परियोजना दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट कही जा रही है. यह अगले साल सितंबर में शुरू होकर 2026 में पूरी होनी है. इसके लिये दोनों देशों की कुल 14000 हेक्टेयर ज़मीन पानी में समा जायेगी. उत्तराखंड के अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और चंपावत ज़िलों के कई हिस्से इसके लिए बनने वाले बांध के डूब क्षेत्र में हैं. सरकार की प्राथमिक विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) में करीब 134 गांवों (पिथौरागढ़ – 87, चम्पावत – 26 और अल्मोड़ा – 21 गाँव ) के 54,000 लोगों के विस्थापित होने की बात कही गई है.
- पंचेश्वर डैम टिहरी डैम से काफी ऊचा होगा पंचेश्वर बांध की ऊचाई 315 मीटर होगी | यहाँ भारत का सबसे ऊचा बांध होगा वर्त्तमान में टिहरी बांध भारत का सबसे ऊचा बांध है जिसकी उचाई 260 मीटर है |
- पंचेश्वर डैम के साथ में दो छोटे बांध भी बनाये जायेंगे जो इसे नियंत्रित करने के काम आयेंगे इनमे से पहला होगा रुपालीगाड डैम जिसकी क्षमता 240 मेगावाट और दूसरा होगा पूर्णागिरी डैम जिसकी क्षमता 1000 मेगावाट होगी |
- पंचेश्वर में बांध बनाने का सर्वप्रथम जिक्र 1996 में महाकाली संधि में हुआ था | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पिछली नेपाल यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच बांध के लिये संधि पर हस्ताक्षर किये |
- पंचेश्वर बहुउद्देश्यीय परियोजना मुख्यतः विद्युत उत्पादन के अतिरिक्त, सिंचाई, पेयजल और बिहार व उत्तर प्रदेश में आने वाली बाढ़ पर नियंत्रण के उद्देश्य के लिए बनाई गई है। उत्तराखण्ड का एक बड़ा क्षेत्रफल इस परियोजना के तहत डूब जाना है और एक बड़ी आबादी इससे प्रभावित भी होनी है।
- इनके अलावा उत्तराखंड की कुछ अन्य जल विधुत परियोजनाएं, उनसे सम्बंधित नदी, क्षमता तथा स्थिति निम्नलिखित है
- मनेरी भाली परियोजना – भागीरथी , 90 मेगावाट , उत्तरकाशी
- श्रीनगर जल विधुत परियोजना – अलकनंदा, 330 मेगावाट , श्रीनगर
- पथरी परियोजना – गंगा नहर , 20 मेगावाट, हरिद्वार
- खटीमा परियोजना – शारदा , 41 मेगावाट , उधम सिंह नगर
- छिबरो परियोजना – टोंस , 240 मेगावाट , देहरादून
- रामगंगा परियोजना – रामगंगा , 198 मेगावाट , पौड़ी
- टनकपुर परियोजना – शारदा , 120 मेगावाट , चम्पावत
उत्तराखंड (गढ़वाल) के प्रमुख ताल / झीलें (Lakes of Uttarakhand)
महासरताल
- महासरताल टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित है
- यह झील दो कटोरेनुमा तालों से निर्मित है
- महासर ताल को भाई बहन ताल भी कहा जाता है
सहस्त्रताल
- सहस्त्रताल टिहरी गढ़वाल जिले मेर स्थित गढ़वाल क्षेत्र का सबसे बड़ा व गहरा ताल है
यमताल
- यह ताल टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित है
बासुकीताल
- बासुकीताल टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित है
- बासुकीताल का पानी लाल रंग का है
- यह ताल नीले रंग के कमल के लिए प्रसिद्ध है
मंसूर ताल
- मंसूर ताल टिहरी गढ़वाल जिले में खतलिंग ग्लेशियर के समीप स्थित है
- इस ताल से दूध गंगा नदी निकलती है
रूपकुण्ड
- रूपकुण्ड चमोली जिले में बेदिनी बुग्याल के निकट स्थित है
- ऐसी मान्यता है कि इस ताल का निर्माण शिव पार्वती ने कैलाश जाते समय किया था
- इस ताल के समीप नर कंकाल प्राप्त होते है इसलिए इसे कंकाली ताल भी कहा जाता है एअसी मान्यता है की ये कंकाल यहाँ के राजा यशधवल और रानी बल्पा और उनके सैनिकों के है
अप्सराताल
- यह ताल टिहरी के समीप स्थित है इसे अछरी ताल भी कहा जाता है
होमकुण्ड
- होमकुण्ड झील रूपकुण्ड से 17 किमी की दूरी पर चमोली जिले में स्थित है
हेमकुण्ड
- हेमकुण्ड चमोली जिले में स्थित है
- इस झील के किनारे सिक्खों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने तपस्या की थी इसके किनारे एक प्रसिद्ध गुरुद्वारा हेमकुण्ड साहिब है
- हेमकुण्ड झील को लोकपाल झील भी कहा जाता है
- हेमकुण्ड से अलकनंदा की सहायक नदी लक्ष्मण गंगा निकलती है
सतोपंथ ताल
- सतोपंथ ताल चमोली जिले में स्थित है
शरवदी ताल
- यह ताल रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है
- इस ताल को गाँधी सरोवर भी कहा जाता है , 1948 में यहाँ महात्मा गाँधी की अस्थियाँ प्रवाहित की गयी थी
- शरवदी ताल को चौरा बाड़ी ताल भी कहा जाता है
लिंगाताल
- लिंगाताल चमोली जिले में फूलों की घाटी के मध्य में स्थित है
बेनिताल
- यह ताल चमोली जिले में स्थित है , इसके निकट नंदा देवी मंदिर है
फाचकंडी बयांताल
- यह ताल उत्तरकाशी जिले में स्थित है इसका जल उबलता हुआ है
भेंक ताल
- यह ताल रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है , इसका आकार अण्डाकार है
- इन सभी तालो के अलावा गढ़वाल क्षेत्र के कुछ और ताल और उनकी स्थिति निम्नवत है
- मातृका ताल – चमोली
- नरसिंह ताल – चमोली
- सिद्ध ताल – चमोली
- नचिकेता ताल – उत्तरकाशी
- डोडिताल – उत्तरकाशी
- केदारताल – उत्तरकाशी
- सरताल – उत्तरकाशी
- रोही साड़ाताल- उत्तरकाशी
- भराड़सर ताल उत्तरकाशी
- खिड़ा ताल – उत्तरकाशी
- देवरिया ताल – रूद्र प्रयाग
- बदाणी ताल – रुद्रप्रयाग
- गोहना ताल – रुद्रप्रयाग
- झल ताल – चमोली
- सुख ताल – चमोली
- विष्णु ताल – चमोली
- बेनिताल – चमोली
- विरही ताल(गौना झील )- चमोली
- ताराकुंड – चमोली
- दुग्ध ताल – पौड़ी गढ़वाल
- भिलंग ताल – टिहरी गढ़वाल
उत्तराखंड (कुमाऊं) के प्रमुख ताल / झीलें (Lakes of Uttarakhand)
नैनीताल
- नैनीताल को स्कन्दपुराण में त्रि ऋषि सरोवर कहा गया है , नैनीताल को सरोवर नगरी तथा झीलों की नगरी भी कहा जाता है
- नैनीताल सात पहाडियों से घिरा है , जिसमे ‘चाइना पीक (नैना पीक), शेर का डांडा , आयरपात , देवपात , हाड़ीवादी , स्नो व्यू , आलमसरिया काँटा’ सामिल है
- नैनीताल की खोज 1841 में सी.पी. बैरन ने की
- नैनीताल के दक्षिण-पूर्वी भाग से बालिया नदी निकलती है
- नैनीताल की लम्बाई 1430 मीटर , चौड़ाई 465 मीटर तथा गहराई 16-26 मीटर है
भीमताल
- भीमताल उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित, कुमाऊं का सबसे बड़ा ताल है
- भीमताल की लम्बाई 1674 मीटर , चौड़ाई 447 मीटर तथा गहराई 26 मीटर है
नौकुचियाताल
- नौकुचियाताल नैनीताल से 26 किमी व भीमताल से 5 किमी की दूरी पर नैनीताल जिले में स्थित है
- नौकुचियाताल कुमाऊं की सबसे गहरी झील/ताल है
- नौकुचियाताल की लम्बाई 950 मीटर , चौड़ाई 680 मीटर तथा गहराई 40 मीटर है
- नौकुचियाताल में नौ कोने है इसी लिए इसे नौकुचियाताल कहा जाता है
सातताल
- सातताल नैनीताल से 22 किमी तथा भीमताल से 4 किमी दूरी पर स्थित कुमाऊं की सबसे सुन्दर झील है
- यहाँ पहले सात झीले थी जिसमे से कई सूख गयी है , इनमे नल दमयंती ताल , गरुड़ या पन्ना ताल , पूर्ण ताल , लक्ष्मण ताल व राम-सीता ताल प्रमुख है
- यहाँ नल दमयंती ताल की आकृति अश्व खुर के समान है तथा इसमें मछलियाँ नहीं पकड़ी जाती है
खुरपाताल
- खुरपाताल नैनीताल से 12 किमी की दूरी पर स्थित है
- खुरपाताल की लम्बाई 1633 मीटर , चौड़ाई 5000 मीटर है
- इसका आकार जानवरों के खुर के समान है
झिलमिल ताल
- झिलमिल ताल चम्पावत जिले के टनकपुर-ब्रह्मदेव से 5 किमी की दूरी पर स्थित है
द्रोण सागर
- यह ताल उधम सिंह नगर के काशीपुर से 2 किमी की दूरी पर स्थित है
- यहाँ गुरु द्रोण ने अपने शिष्यों को धनुर्विद्या की शिक्षा दी थी
गिरीताल
- यह ताल उधमसिंह नगर जिले में है
श्यामला ताल
- श्यामला ताल चम्पावत जिले में स्थित है
- यहाँ सफेद कमल के फूल मिलते है
- श्यामला ताल के किनारे विवेकानंद आश्रम स्थित है
- यहाँ झूला मेला लगता है
तड़ाग ताल
- तड़ाग ताल अल्मोड़ा जिले के चौखुटिया से 10 किमी की दूरी पर स्थित है
- इस ताल में पानी की निकासी के लिए पांच सुरंगे बनी है जिसमे से तीन अब बंद हो गयी है
सुकुन्डा ताल
- यह बागेश्वर जिले में स्थित है
- इनके अलावा सूखा ताल, मलवाताल, सड़िया ताल तथा हरिश ताल आदि नैनीताल जिले में है .
उत्तराखंड के प्रमुख जल प्रपात (Waterfalls in Uttarakhand)
कैम्पटी फॉल (kempty Fall)
- कैम्पटी फॉल टिहरी जनपद में मसूरी से 15 किमी की दूरी पर यमुनोत्री मार्ग में स्थित है , इसकी ऊंचाई 14 मीटर है
टाइगर फॉल (Tiger Fall)
- टाइगर फॉल देहरादून जिले में चकराता के समीप स्थित है इसकी ऊंचाई 50 मीटर है
सहस्त्रधारा जलप्रपात ( Sahastradhara Waterfall )
- सहस्त्रधारा जलप्रपात देहरादून से 11 किमी. की दूरी पर स्थित है. यहां एक गंधकयुक्त झरना है जिसमें नहाने से चर्म रोग ठीक हो जाते है
बसुन्धरा जल प्रपात (Vasundhara Waterfall)
- बसुन्धरा जल प्रपात चमोली जिले में माणा गाँव से 5 किमी दूरी पर अलकनंदा नदी में स्थित है इसकी ऊंचाई 112 मीटर है
विरथी प्रपात (Birthi Fall)
- विरथी जल प्रपात पिथोरागढ़ जनपद में मुनस्यारी के निकट है
मुनस्यारी प्रपात
- मुनस्यारी प्रपात पिथोरागढ़ के मुनस्यारी नमक स्थान पर है
भेलछड़ा प्रपात
- यह जलप्रपात पिथौरागढ़ जनपद में नेपाल की सीमा के निकट स्थित है
भट्टा प्रपात (Bhatta Fall)
- यह जल प्रपात मसूरी के पास में स्थित है
हार्डी प्रपात (Hardy Fall)
- यह मसूरी के पास में स्थित है
उत्तराखंड के प्रमुख ग्लेशियर (हिमनद ) (Glaciers of Uttarakhand)
मिलम हिमनद (Milam Glacier)
- मिलम ग्लेशियर पिथोरागढ़ जनपद के मुनस्यारी में स्थित है इसकी लम्बाई 16 किमी है
- मिलम ग्लेशियर कुमाऊं का सबसे बड़ा ग्लेशियर है , इस ग्लेशियर से पिंडर की सहायक नदी मिलम व काली की सहायक नदी गोरीगंगा निकलती है
गंगोत्री हिमनद (Gangotri Glacier)
- गंगोत्री ग्लेशियर उत्तरकाशी जनपद में स्थित है यह उत्तराखंड का सबसे बड़ा हिमनद है , यह 30 किमी लम्बा एवं 2 किमी चौड़ा है
- गंगोत्री हिमनद के गोमुख नमक स्थान से भागीरथी नदी निकलती है
पिण्डारी हिमनद ( Pindari Glacier)
- पिंडारी ग्लेशियर बागेश्वर तथा चमोली जनपद में स्थित है इस ग्लेशियर की लम्बाई 30 किमी तथा चौड़ाई 400 मीटर है
बंदरपुंछ हिमनद (Bandarpunch Glacier)
- बंदरपूंछ ग्लेशियर उत्तरकाशी जनपद में बन्दरपुंछ पर्वत श्रेणी पर स्थित है इसकी लम्बाई 12 किमी है
चौराबाड़ी हिमनद (Chaurabadi Glacier)
- चौराबाड़ी ग्लेशियर केदारनाथ से 3 किमी की दूरी पर स्थित है इस हिमनद से मन्दाकिनी नदी निकलती है
खतलिंग हिमनद (Khatling Glacier)
- खतलिंग ग्लेशियर केदारनाथ से 10 किमी की दूरी पर स्थित है यहाँ से भिलंगना नदी निकलती है
- इनके अलावा कुछ अन्य ग्लेशियर व उनकी स्थिति निम्नलिखित है
- खतलिंग ग्लेशियर – टिहरी और रुद्रप्रयाग
- दूनागिरी ग्लेशियर – चमोली
- सतोपंथ ग्लेशियर – चमोली
- भागीरथी ग्लेशियर – चमोली
- हिपराबमक ग्लेशियर – चमोली
- मिलम ग्लेशियर – पिथोरागढ़
- काली ग्लेशियर – पिथोरागढ़
- हीरामणि ग्लेशियर – पिथोरागढ़
- नामिक ग्लेशियर – पिथोरागढ़
- पिनौरा ग्लेशियर – पिथोरागढ़
- रालम ग्लेशियर – पिथोरागढ़
- पोटिंग ग्लेशियर – पिथोरागढ़
- पिंडारी ग्लेशियर – बागेश्वर
- सुखराम ग्लेशियर – बागेश्वर
- सुन्दरढुंगा ग्लेशियर – बागेश्वर
- कफनी ग्लेशियर – बागेश्वर
- मैकतोली ग्लेशियर – बागेश्वर
- यमुनोत्री ग्लेशियर – उत्तरकाशी
- गंगोत्री ग्लेशियर – उत्तरकाशी
- बन्दरपूंछ ग्लेशियर – उत्तरकाशी
- डोरियानी ग्लेशियर – उत्तरकाशी
- चौराबाड़ी ग्लेशियर – रुद्रप्रयाग
- केदारनाथ ग्लेशियर – रुद्रप्रयाग
बुग्याल
बुग्याल के प्रकार
- महाहिमालय में हिम रेखा से नीचे 3500 से 6000 मीटर की ऊंचाई पर पाये जाने वाले घास के मैदानों को उत्तराखंड में बुग्याल कहा जाता है , बुग्यालो को कश्मीर में मर्ग तथा कुल्लू में थच कहा जाता है
- बुग्याल पांच प्रकार के होते है
- दुग या दुघ बुग्याल (छोटी घास वाले बुग्याल)
- बस बुग्याल (पशुओ की वसा बढाने वाली घास वाले)
- मोट बुग्याल (मोट बुग या फ्लूम प्रजाति की घास वाले बुग्याल )
- धनिया बुग्याल (व्यांस – मालपा क्षेत्र वाले)
- धत्ती बुग्याल (धत्ती बुग वनस्पति वाले)
उत्तराखंड के प्रमुख बुग्याल
- उत्तराखंड के प्रमुख बुग्याल निम्नलिखित है :
फूलों की घाटी (Valley of flowers)
- फूलों की घाटी चमोली जिले में जोशीमठ -बद्रीनाथ मार्ग पर नर एवं गंध मादन पर्वतो के बीच में भ्युंडार घाटी में स्थित है , फूलों की घाटी की खोज सन 1931 में ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक सिडनी स्माइथ ने की , उन्होंने यहाँ अपने साथी होल्ड्सवर्थ की सहायता से फूलो की 250 किस्मो का पता लगाकर 1947 में अपनी पुस्तक फूलों की घाटी (Valley of flowers) में प्रकाशित किया|
- वर्ष 2005 में फूलों की घाटी को विश्व धरोहर में सामिल किया गया |
औली
- औली उत्तराखंड के चमोली जनपद में जोशीमठ से 15 किमी की दूरी पर स्थित है यह शीतकालीन हिम क्रीडाओं , स्कीइंग के लिए प्रसिद्ध है
बेदनी बुग्याल
- बेदिनी बुग्याल चमोली जनपद में स्थित उत्तराखंड का सबसे बड़ा बुग्याल है इसे वेदों का रचना स्थल माना जाता है यह मखमली घास के लिए प्रसिद्ध है|
हर की दून
- यह बुग्याल उत्तरकाशी जनपद में स्थित है यहाँ टोंस नदी का उदगम स्थल है
- उत्तराखंड के कुछ अन्य बुग्याल व उनकी स्थिति निम्नलिखित है
- लक्ष्मी वन – चमोली
- कैला बुग्याल – चमोली
- बर्मी बुग्याल – उत्तरकाशी
- जली सेरा – चमोली
- मनपे – चमोली
- राज खर्क – चमोली
- हुण्या बुग्याल – चमोली
- देवदामिनी – उत्तरकाशी
- दयारा – उत्तरकाशी
- पवांली कांठा – टिहरी
- दूधातोली – चमोली व पौड़ी
- भेटी बुग्याल – चमोली
- मनणी बुग्याल – चमोली
- चौमासी – चमोली
- केदार खर्क – उत्तरकाशी
- तपोवन – उत्तरकाशी
- खादू खर्क – चमोली
- कसनी खर्क – रुद्रप्रयाग
- लाता खर्क – चमोली
- डांग खर्क – चमोली
- कोरा खर्क – चमोली
- बागची बुग्याल – चमोली
- अविन खर्क – चमोली
- सुथिंग – चमोली
- पातर नाचाैणियां – चमोली
- नंदनकानन – चमोली
- सतोपंथ – चमोली
- रातकोण – चमोली
- जौराई – टिहरी
- चोपता – रुद्रप्रयाग
- बर्मी – रुद्रप्रयाग
- कफनी – बागेश्वर
- क्वारी – चमोली
उत्तराखण्ड – प्रमुख दर्रे
- दर्रा – पहाडियों एव पर्वतिय क्षेत्रों में पाए जाने वाले आवागमन के प्राकृतिक मार्गों को दर्रा कहा जाता है।
- पिथौरागढ़-तिब्बत – लिपुलेख, दारमा
- उत्तरकाशी-तिब्बत – थागला, मुलिंगला, नेलंग, सागचोकला
- चमोली-तिब्बत – नीती, किंगरी-बिंगरी, माणा-डूंगरी ला, बालचा, घाटरलिया, कोई, म्यूंडार, शलशला, तन्जुन, चोरहोती, लमलंग
- चमोली-पिथौरागढ – बाराहोती, मार्चयोग, टोपीधुंगा, लातुधुरा
- बागेश्वर-पिथौरागढ – ट्रेल पास
- बागेश्वर-चमोली – सुंदरढुंगा
- रकाशी-चमोली – कालिंदी
- उत्तरकाशी-हिमांचल प्रदेश – श्रृंगकंठ
- चम्पावत-पिथौरागढ – लासपा
- दारमा-व्यास घाटी – सिनला
उत्तराखंड के वन (Forests of Uttarakhand)
- उत्तराखंड में वन सम्पदा का अतुल भंडार है नवीनतम आंकड़ो के अनुसार उत्तराखंड में 34,650 वर्ग किमी में वनों का विस्तार है
- उत्तराखंड में 600-1200 मीटर ऊंचाई वाले क्षेत्रो में वनों का प्रतिशत 16.3 तथा 1200 से 1800 मीटर ऊंचाई वाले क्षेत्रो में 22.3 प्रतिशत तथा 1800 से 3000 मीटर ऊंचाई वाले क्षेत्रो में सर्वाधिक 22.3 प्रतिशत वन है और 3000 मीटर से ऊंचाई वाले क्षेत्रो में केवल 7.5 प्रतिशत वन क्षेत्र है|
- 14 वे वन रिपोर्ट के अनुसार राज्य के कुल क्षेत्रफल के 46.73 प्रतिशत भाग पर वन है इसमें से 19.61 % भाग पर अति सघन वन , 56.11% भाग पर मध्यम सघन वन व 24.27% भाग पर खुले वन है
- उत्तराखंड में कुल वनों के 49.63 % आरक्षित वन , 18.48 % संरक्षित वन तथा 2.93 % अवर्गीकृत वनों के अंतर्गत आते है|
- उत्तराखंड में सर्वाधिक वन क्षेत्रफल पौड़ी गढ़वाल जिले में तथा सबसे कम वें क्षेत्रफल उधम सिंह नगर में है|
- उत्तराखंड में सबसे अधिक सघन वन नैनीताल में , सबसे अधिक मध्यम सघन वन पौड़ी तथा सर्वाधिक खुले वन पौड़ी जनपद में है|
- राज्य में कुल वनों का 59.70% गढ़वाल मण्डल में तथा 40.30 % कुमाऊं मण्डल में है|
- उत्तराखंड में नदी बेसिनो के कुल क्षेत्रफल में वनों के क्षेत्रफल की दृष्टि से सर्वाधिक वन टोंस बेसिन में है
- उत्तराखंड में कुल वन क्षेत्रफल का 70.46 % वन विभागाधीन , 13.76 % राजस्व विभागाधीन , 15.32 प्रतिशत वन पंचायाताधीन तथा .46 % निजी वन है
उत्तराखंड में पाये जाने वाले वनों के प्रकार
उपोष्ण कटिबन्धीय वन
- ये वन 750 से 1200 मीटर की ऊंचाई पर पाये जाते है साल इन वनों का प्रमुख वृक्ष है इसमें उत्तराखंड का उप हिमालय क्षेत्र आता है
उष्ण कटिबन्धीय शुष्क वन
- ये वन 1500 मीटर ऊंचाई से कम वाले ऐसे क्षेत्रो में पाये जाते है जहा वर्षा कम होती है , इन वनों की मुख्य वृक्ष जामुन , गूलर, ढाक आदि है
उष्ण कटिबन्धीय आद्र पतझड़ वन
- ये वन शिवालिक क्षेत्रो तथा दून क्षेत्रो में पाये जाते है इन्हें मानसूनी वन भी कहते है इन वनों की मुख्या प्रजातियाँ सागौन, शहतूत, साल , बांस आदि है
कोणधारी वन
- ये वन 900-1800 मीटर ऊंचाई पर पाये जाते है , चीड़ इनका मुख्या वृक्ष है
पर्वतीय शीतोष्ण वन
- ये वन 1800-2700 मीटर की ऊंचाई पर पाये जाते है चीड़, देवदार, स्प्रूस, फर आदि इनके मुख्या वृक्ष है
उप एल्पाइन तथा एल्पाइन वन
- ये वन 2700 मीटर से अधिक ऊंचाई पर मिलते है बुरांश,पाइन , फर, देवदार इनकी मुख्या प्रजातियाँ है
घास के मैदान (बुग्याल )
- मध्य हिमालय में 3800 से 4200 मीटर की ऊंचाई पर घास के मैदान पाये जाते है इन्हें बुग्याल कहा जाता है
उत्तराखंड में वनों से सम्बंधित आन्दोलन
- उत्तराखंड में वनों के संरक्षण के लिए कई जन आन्दोलन हुए जिनमे से कुछ प्रमुख निम्नलिखित है
चिपको आन्दोलन (Chipko movement)
- चिपको आन्दोलन की शुरुआत 1972 से चली आ रही वनों की अंधाधुन्द कटाई को रोकने के लिए चमोली जिले के गोपेश्वर से 23 वर्षीय महिला गौरा देवी द्वारा 1974 में की गयी , इस आन्दोलन में वनों को काटने से बचाने के लिए ग्रामवासी वृक्षों से चिपक जाते थे इसी लिए इस आन्दोलन का नाम चिपको आन्दोलन पड़ा |
- चिपको आन्दोलन को विश्व स्थर पर पहचान दिलाने में सुन्दरलाल बहुगुणा और चंडी प्रसाद भट्ट ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, इस आन्दोलन के लिए चंडी प्रसाद भट्ट को 1982 में रेमन मैग्सेसे पुरष्कार दिया गया
- इस आन्दोलन के दौरान सुन्दरलाल बहुगुणा ने ‘हिमालय बचाओ देश बचाओ‘ का नारा दिया
रंवाई आन्दोलन
- टिहरी में राजा मानवेन्द्र शाह के समय में एक कानून बनाया गया जिसके अंतर्गत किसानो की भूमि को वन भूमि में सामिल करने की बात की गयी , इस व्यस्था के खिलाप टिहरी की जनता ने आन्दोलन शुरू कर दिया , जिसमे 30 मई 1930 को दीवान चक्रधर जुयाल की आज्ञा से सेना द्वारा चलायी गोलियों से अनेक आन्दोलनकारी शहीद हो गए , इस क्षेत्र में आज भी 30 मई को शहीद दिवस मनाया जाता है
- रंवाई आन्दोलन को तिलाड़ी आन्दोलन के नाम से भी जाना जाता है
डूंगी – पैंतोली आन्दोलन
- यह आन्दोलन चमोली जनपद में बांज के जंगल काटने के विरोध में हुआ
पाणी राखो आन्दोलन
- यह आन्दोलन पौड़ी जनपद के उफरेंखाल गाँव में पानी की कमी को दूर करने के लिए चलाया गया, इस आन्दोलन के परिणाम स्वरुप पानी की कमी से बंजर भूमि पुनः हरी भरी हो गयी
- इस आंदोलन के सूत्रधार यहाँ के शिक्षक सच्चिदानंद भारती थे जिन्होंने ‘ दूधातोली लोक विकास संस्थान‘ का गठन किया
मैती आन्दोलन
- मैती आन्दोलन की शुरुआत 1996 में कल्याण सिंह रावत द्वारा गयी , इस आन्दोलन के तहत विवाह के दौरान वर-वधु द्वारा एक पौधा लगाया जाता है तथा बाद में मायके वाले उस पौधे की देखभाल करते है
रक्षा सूत्र आन्दोलन
- यह आन्दोलन 1944 में टिहरी से शुरू हुआ इसके तहत वृक्ष पर रक्षा सूत्र बाँध कर उसकी रक्षा करने का संकल्प लिया जाता है
1977 का वन आन्दोलन
- 1977 में वनों की नीलामी के विरोध में आन्दोलन हुआ , इस आन्दोलन के दौरान 1978 में पहली बार उत्तराखंड बंद हुआ
उत्तराखंड के राष्ट्रीय उद्यान (National Parks of Uttarakhand)
वन्य जीवो के संरक्षण के लिए उत्तराखंड में 6 राष्ट्रीय उद्यान (National Parks) है जो निम्नलिखित है
जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान (Jim Corbett National Park)
- जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान 1936 में हेली राष्ट्रीय उद्यान के नाम से स्थापित भारत तथा एशिया का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है स्वतंत्रता के बाद इसका नाम रामगंगा नेशनल पार्क रखा गया , फिर वर्ष 1957 में इसका नाम प्रकृति प्रेमी जिम कॉर्बेट के नाम पर जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान कर दिया गया|
- जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान नैनीताल और पौड़ी जिले में 520.82 वर्ग किमी में विस्तृत है, इसका प्रवेश द्वार नैनीताल जिले के ढिकाला में है , जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के मध्य में पाटली दून स्थित है
- जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान को 1 नवम्बर 1973 देश का पहला बाघ संरक्षित घोषित किया गया , यह राष्ट्रीय उद्यान प्रयटको को सर्वाधिक आकर्षित करने वाला राष्ट्रीय उद्यान है|
गोविन्द राष्ट्रीय उद्यान (Govind National Park)
- गोविन्द राष्ट्रीय उद्यान उत्तरकाशी जिले में स्थित है इसकी स्थापना 1980 में की गयी , यह राष्ट्रीय उद्यान 472 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला है
- गोविन्द राष्ट्रीय उद्यान में भूरा भालू , कस्तूरी मृग, हिम तेंदुआ, काला भालू , मोनाल आदि पशु-पक्षी पाये जाते है
नंदादेवी राष्ट्रीय उद्यान (Nandadevi National Park)
- नंदादेवी राष्ट्रीय उद्यान चमोली जिले में 624 वर्ग किमी में फैला है , इसकी स्थापना 1982 में की गयी , इस पार्क में हिमालयन भालू, मोनाल, कस्तूरी मृग , भरल आदि पशु-पक्षी पाये जाते है
फूलो की घाटी राष्ट्रीय उद्यान (Valley of Flowers National Park)
- फूलों की घाटी चमोली जिले में जोशीमठ -बद्रीनाथ मार्ग पर नर एवं गंध मादन पर्वतो के बीच में भ्युंडार घाटी में स्थित है , फूलों की घाटी की खोज सन 1931 में ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक सिडनी स्माइथ ने की , उन्होंने यहाँ अपने साथी होल्ड्सवर्थ की सहायता से फूलो की 250 किस्मो का पता लगाकर 1947 में अपनी पुस्तक फूलों की घाटी (Valley of flowers) में प्रकाशित किया|
- फूलो की घाटी को 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया तथा वर्ष 2005 में फूलों की घाटी को विश्व धरोहर में सामिल किया गया |
- फूलो की घाटी के कुछ अन्य नाम नंदन कानन, अलका, गंधमाधन, बैकुंठ, पुश्पावाली, पुष्परसा तथा फ्रैंक स्माइथ घाटी हैं
राजाजी राष्ट्रीय उद्यान (Rajaji National Park)
- राजाजी राष्ट्रीय उद्यान हरिद्वार, देहरादून तथा पौड़ी गढ़वाल जिलो में 820.42 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला है इसकी स्थापना 1983 में की गयी , इसका मुख्यालय देहरादून में है|
गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान (Gangotri National Park)
- गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान उत्तरकाशी जिले में 2390 वर्ग किमी में विस्तृत उत्तराखंड का सबसे अधिक क्षेत्रफल वाला राष्ट्रीय उद्यान है इसकी स्थापना 1989 में की गयी|
उत्तराखंड के वन्य जीव अभ्यारण्य (Wildlife Sanctuary of Uttarakhand)
- उत्तराखंड में कुल 7 वन्य जीव विहार (अभ्यारण्य ) है
केदारनाथ वन्य जीव विहार (Kedarnath Wildlife Sanctuary)
- केदारनाथ वन्य जीव विहार जनपद चमोली तथा रुद्रप्रयाग में 957 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला है इसकी स्थापना सन् 1972 में की गयी , यहाँ मुख्यतः भूरा भालू, कस्तूरी मृग, हिम तेंदुआ, घुरल, काकड़ , जंगली सूअर आदि जीव पाये जाते है , यह उत्तराखंड का सबसे अधिक क्षेत्रफल वाला वन्य जीव विहार है|
अस्कोट वन्य जीव विहार (Askot Wildlife Sanctuary)
- अस्कोट वन्य जीव विहार जनपद पिथोरागढ़ में 600 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला है इसकी स्थापना सन् 1986 में की गयी, अस्कोट वन्य जीव अभ्यारण्य कस्तूरी मृग के लिए प्रसिद्ध है
गोविन्द वन्य जीव विहार (Govind Wildlife Sanctuary)
- गोविन्द वन्य जीव विहार जनपद उत्तरकाशी में 485 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला है इसकी स्थापना सन् 1955 में की गयी, यहाँ पर मुख्यतः भूरा भालू, कस्तूरी मृग, हिम तेंदुआ, घुरल, काकड़ , जंगली सूअर, जंगली बिल्ली, आदि जानवर पाये जाते है
सोनानदी वन्य जीव विहार (Sonanadi Wildlife Sanctuary)
- सोनानदी वन्य जीव विहार जनपद पौड़ी गढ़वाल में 301वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला है इसकी स्थापना सन् 1987 में की गयी, यहाँ पर मुख्यतः हाथी , शेर , घुरल, काकड़ , जंगली सूअर, मगर, घड़ियाल, अजगर आदि जानवर पाये जाते है
बिनसर वन्य जीव विहार (Binsar Wildlife Sanctuary)
- बिनसर वन्य जीव विहार जनपद अल्मोड़ा में 47 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला है इसकी स्थापना सन् 1988 में की गयी, यहाँ पर मुख्यतः काला भालू, , घुरल, काकड़ , जंगली सूअर, जंगली बिल्ली, आदि जानवर पाये जाते है
मसूरी वन्य जीव विहार (Mussoorie Wildlife Sanctuary)
- मसूरी वन्य जीव विहार जनपद देहरादून में 11 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला है इसकी स्थापना सन् 1993 में की गयी, यहाँ पर मुख्यतः काला भालू, लंगूर, बन्दर ,घुरल, काकड़ , जंगली सूअर आदि जानवर पाये जाते है
नन्धौर वन्य जीव विहार (Nandhaur Wildlife Sanctuary)
- नन्धौर वन्य जीव विहार जनपद नैनीताल व चम्पावत में 270 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला है इसकी स्थापना सन् 2012 में की गयी, यहाँ पर मुख्यतः भालू, बाघ, लंगूर आदि जानवर पाये जाते है
उत्तराखंड के प्रमुख खनिज (Major Minerals of Uttarakhand)
- उत्तराखंड राज्य में खनिज कम ही मात्र में उपलब्ध है , कुछ प्रमुख खनिज पदार्थ और उनके प्राप्ति स्थल निम्नलिखित है
- चूना पत्थर – देहरादून, पिथोरागढ़, टिहरी, चमोली
- संगमरमर – देहरादून, टिहरी, नैनीताल
- चांदी – अल्मोड़ा
- सोना – शारदा, पिंडर , रामगंगा व अलकनंदा नदियों की रेत में
- टिन – चमोली
- लोहा– नैनीताल , टिहरी, पौड़ी ,चमोली
- तांबा – चमोली, पौड़ी, देहरादून, टिहरी, उत्तरकाशी, अल्मोड़ा, नैनीताल
- सीसा – पिथोरागढ़, अल्मोड़ा, देहरादून, उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी
- ग्रेफाइट – अल्मोड़ा, पौड़ी, नैनीताल
- स्लेट्स – उत्तरकाशी,नैनीताल, पौड़ी
- जिप्सम – देहरादून, पौड़ी, नैनीताल, टिहरी
- मैग्नेसाईट – चमोली, बागेश्वर, पिथोरागढ़
- सोप स्टोन – अल्मोड़ा , बागेश्वर, पिथोरागढ़, चमोली
- फास्फोराईट – देहरादून, टिहरी
- डोलोमाईट – देहरादून, पिथोरागढ़, टिहरी
- बेराइट्स – देहरादून
- गंधक – चमोली, देहरादून
- उत्तराखंड में खनन नीती की घोषणा 4 अप्रैल 2001 को की गयी इसके अनुसार वन क्षेत्रो खनिजो के खनन का कार्य ‘उत्तराखंड वन विकास निगम’ तथा अन्य क्षेत्रो में खनन का कार्य ‘कुमाऊं मंडल विकास निगम’ तथा ‘गढ़वाल मंडल विकास निगम’ द्वारा किया जाता है|
उत्तराखंड के प्रमुख मेले (Major Fairs of Uttarakhand)
जौलजीवी मेला
- जौलजीवी मेला उत्तराखंड के पिथोरागढ़ जनपद के काली एवं गौरी नदियों के संगम पर स्थित जौलजीवी नामक स्थान पर प्रतिवर्ष 14 से 19 नवम्बर तक लगता है , इस मेले की शुरुआत 1914 में हुई थी|
चैती मेला (बाला सुन्दरी मेला)
- चैती मेला उधम सिंह नगर जिले के काशीपुर के कुण्ड़ेश्वरी देवी मंदिर में लगता है , कुण्ड़ेश्वरी कुमाऊं में चन्द राजाओ की कुलदेवी मानी जाती है|
माघ मेला
- माघ मेला उत्तरकाशी में प्रतिवर्ष 14 जनवरी से शुरू होता है इसे बाड़ाहाट का थौल भी कहा जाता है|
बिस्सू मेला
- यह मेला उत्तरकाशी जनपद के कई स्थानों पर बैसाखी के दिन लगता है
नंदादेवी मेला
- नंदादेवी मेली उत्तराखंड में भाद्र शुक्ल पक्ष की पंचमी से अल्मोड़ा, नैनीताल, बागेश्वर, मिलम आदि कई स्थानों पर लगता है
श्रावणी मेला
- श्रावणी मेला अल्मोड़ा के जागेश्वर में श्रावण मॉस में एक महीने तक लगता है|
सोमनाथ मेला
- सोमनाथ मेला अल्मोड़ा जिले के मासी नामक स्थान पर लगता है यह मेला पशुओ के क्रय विक्रय के लिए प्रसिद्ध है|
स्याल्दे बिखौती मेला
- स्याल्दे बिखौती मेला अल्मोड़ा जनपद के द्वाराहाट में प्रतिवर्ष बैसाख माह के पहले व दूसरे दिन लगता है|
बैकुण्ठ चतुर्दशी मेला
- बैकुंठ चतुर्दशी मेला पौड़ी जिले के श्रीनगर के कमलेश्वर मंदिर में बैकुंठ चतुर्दशी के अवसर पर लगता है|
गोचर मेला
- गोचर मेला चमोली जिले के गोचर नामक स्थान पर लगता है इस मेले की शुरुआत 1943 में गढ़वाल के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर बर्नेडी ने की थी |
झन्डा मेला
- झन्डा मेला देहरादून में प्रतिवर्ष होली के पांचवे दिन गुरु राम राय के जन्मदिन के अवसर पर मनाया जाता है|
थल मेला
- थल मेला पिथोरागढ़ के थल में प्रतिवर्ष बैसाखी के अवसर पर लगता है , इसकी शुरुआत 13 अप्रैल 1940 को हुई|
- इसके अलावा उत्तराखंड के कुछ अन्य मेले तथा उनके आयोजन स्थल निम्नलिखित है
- गणनाथ मेला – ताकुला (अल्मोड़ा)
- पूर्णागिरी मेला – टनकपुर
- बग्वाल मेला – देवीधुरा (चम्पावत)
- लड़ी धुरा मेला – चम्पावत
- मानेश्वर मेला – मायावती आश्रम (चम्पावत )
- दनगल मेला – पौड़ी
- चन्द्रबदनी मेला – टिहरी
- रण भूत कौथिक – टिहरी गढ़वाल
- तिमुड़ा मेला – जोशीमठ
- नुणाई मेला – जौनसार क्षेत्र
- टपकेश्वर मेला – देहरादून
- कुम्भ मेला – हरिद्वार
- पिरान कलियर मेला – रुड़की
- अटरिया मेला – रुद्रपुर
- सिद्ध बलि जयंती मेला – कोटद्वार
- वीर गब्बर सिंह मेला – टिहरी गढ़वाल
- ताडकेश्वर मेला – पौड़ी
- सुरकंडा मेला – टिहरी गढ़वाल
- कण्डक मेला – उत्तरकाशी
- वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली स्मृति मेला – पौड़ी गढ़वाल
- शहीद केशरी चन्द मेला – चकराता
- बसंत बुरांश मेला – चमोली
- नाग टिब्बा मेला – जौनपुर (टिहरी गढ़वाल)
- जाखौली मेला – चकराता
- शहीद भवानी दत्त जोशी मेला – थराली (चमोली)
- खरसाली मेला – उत्तरकाशी
- सेलकु मेला – उत्तरकाशी
- क्वानु मेला – चकराता
- खकोटी उत्सव – पौड़ी गढ़वाल
- हिलजात्रा उत्सव – पिथोरागढ़
उत्तराखंड के प्रमुख आभूषण व परिधान
प्रमुख आभूषण
कान के प्रमुख आभूषण
- मुर्खली या मुर्खी (मुंदड़ा )
- बाली (बल्ली )
- कुंडल
- कर्णफूल (कनफूल)
- तुग्यल / बुजनी
- गोरख
सिर के प्रमुख आभूषण
- शीशफूल
- मांगटीका
- बंदी (बांदी )
- सुहाग बिंदी
नाक के प्रमुख आभूषण
- नथ (नथुली)
- बुलाक
- फूली , (लौंग)
- गोरख
- बिड़
गले के प्रमुख आभूषण
- तिलहरी
- चन्द्रहार
- हंसूला (सूत)
- गुलबंद
- चरयो
- झुपिया
- पौंला
- पचमनी
- सुतुवा
हाथ के प्रमुख आभूषण
- धगुले
- पौंछि
- गुन्ठी (अंगूठी)
- धगुला
- ठ्वाक
- गोंखले
कमर के प्रमुख आभूषण
- तगड़ी
- कमर ज्यौड़ी
- अतरदान
पैरो के प्रमुख आभूषण
- झिंवरा
- पौंटा
- लच्छा
- पाजेब
- इमरती
- प्वल्या (बिछुवा)
- कण्डवा
- अमिर्तीतार
- पुलिया
कंधे के प्रमुख आभूषण
- स्यूण-सांगल
प्रमुख परिधान
पुरुषो के परिधान
- कुमाऊनी पुरुषों के परिधान - धोती, पैजामा, सुराव, कोट, कुर्त्ता, भोटू, कमीज मिरजै, टांक (साफा) टोपी आदि।
- गढ़वाली पुरुषों के परिधान - धोती, चूड़ीदार पैजामा, कुर्त्ता, मिरजई, सफेद टोपी, पगडी, बास्कट, गुलबंद आदि।
स्त्रियों के परिधान
- कुमाऊनी स्त्रियों के परिधान - घागरा, लहंगा, आंगडी, खानू, चोली, धोती, पिछोड़ आदि।
- गढ़वाली स्त्रियों के परिधान - आंगड़ी, गाती, धोती, पिछोड़ा आदि।
बच्चों के परिधान
- कुमाऊनी बच्चों की परिधान - झगुली, झगुल कोट, संतराथ आदि।
- गढ़वाली बच्चों के परिधान - झगुली, घाघरा, कोट, चूड़ीदार पजामा, संतराथ आदि।
उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियाँ
- उत्तराखंड में मुख्यतः जौनसारी , थारू, भोटिया, बोक्सा एवं राजी जनजातियाँ निवास लारती है , जिन्हें 1967 से अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत रखा गया है|
- उत्तराखंड में सर्वाधिक जनसँख्या वाली जनजाती थारू तथा सबसे कम जनसंख्या वाली जनजाति राजी है|
- उत्तराखंड में सबसे अधिक अनुसूचित जनजाती के लोग उधम सिंह नगर तथा सबसे कम रुद्रप्रयाग में निवास करते है तथा अनुसूचित जनजाती का सबसे अधिक प्रतिशत उधम सिंह नगर तथा सबसे कम प्रतिशत टिहरी में है|
- राज्य की 70 विधानसभा सीटो में से दो सीट नानकमत्ता तथा चकराता अनुसूचित जनजाती के लिए आरक्षित है|
थारु
- थारू लोग मुख्यतः उधम सिंह नगर जिले में निवास करते है यह उत्तराखंड का सबसे बड़ा जनजातीय समूह है, थारुओ को किरात वंश का माना जाता है
- थारू जनजाती के लोगो में बदला विवाह प्रथा तथा तीन टिकठी विवाह प्रथा प्रचलित है , थारुओ में दोनों पक्षो से विवाह तय हो जाने को पक्की पोड़ी कहा जाता है
- लठभरवा भोज थारू जनजाती से सम्बंधित है
- थारुओ द्वारा बजहर नामक त्यौहार मनाया जाता है दीपावली को ये शोक पर्व के रूप में मनाते है , थारू जनजाति द्वारा होली के मौके पर खिचड़ी नृत्य किया जाता है
जौनसारी
- जौनसारी जनजाती के लोग देहरादून के चकराता, त्यूनी, कालसी , लाखामंडल क्षेत्र , उत्तरकाशी का परग नेकान क्षेत्र तथा टिहरी के जौनपुर क्षेत्र में निवास करते है
- जौनसारी राज्य का दूसरा बड़ा जनजातीय समूह है
- देहरादून के चकराता, कालसी व त्यूनी को संयुक्त रूप से जौनसार बावर क्षेत्र कहा जाता है इस क्षेत्र की मुख्या भाषा जौनसारी है
- हनौल जौनसारी समुदाय का प्रमुख तीर्थस्थल है
- जौनसारी समुदाय के मुख्य त्यौहार बिस्सू (बैसाखी) , पंचाई (दशहरा), दियाई (दिवाली), नुणाई , अठोई आदि है ये दीपावली को एक माह बाद मनाते है
- हारुल, रासों, घुमसू , झेला, धीई, तांदी, मरोज , पौणाई आदि इनके प्रमुख्य नृत्य है
- जौनसार में ग्राम पंचायत को खुमरी कहा जाता है
भोटिया
- उत्तराखंड में भोटिया जनजाती के लोग मुख्यतः पिथोरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी तथा अल्मोड़ा जिलो में निवास करते है मारछा, तोल्छा , जोहारी, शौका , दमरिया, चौन्दासी, व्यासी , जाड ,जेठरा, व छापड़ा इनकी प्रमुख उप जातियां हैं
- भोटिया महा हिमालय की सर्वाधिक जनसँख्या वाली जनजाती है
- भोटिया लोगो द्वारा विवाह के अवसर पर पौणा नृत्य किया जाता है
- तुबेरा, बाज्यू, तिमली आदि भोटिया लोगो के प्रमुख लोकगीत है
बोक्सा
- बोक्सा जनजाति उत्तराखंड में उधम सिंह नगर के बाजपुर, गदरपुर तथा काशीपुर , नैनीताल के रामनगर आदि स्थानों पर निवास कराती है
- चैती, नौबी, होली, दीपावली इनके प्रमुख त्यौहार है
राजी
- राजी जनजाति पिथोरागढ़ के धारचूला ,डीडीहाट विकासखंडो में निवास करती है
- राजी जनजाति के लोगो को बनरौत ,बनरावत , जंगल के राजा आदि नामो से भी जाना जाता है
- राजी उत्तराखंड की सबसे कम जनसँख्या वाली जनजाती है
उत्तराखंड में स्थित प्रमुख गुफाएं व शिलाएं
प्रमुख गुफाएं
- व्यास गुफा – बद्रीनाथ
- गणेश गुफा – बद्रीनाथ
- गरुड़ गुफा – बद्रीनाथ
- स्कन्द गुफा – बद्रीनाथ
- मुचकुन्द गुफा – बद्रीनाथ
- राम गुफा – बद्रीनाथ
- गोरखनाथ गुफा – श्रीनगर
- वशिष्ठ गुफा – टिहरी गढ़वाल
- ब्रह्म गुफा – केदारनाथ
- भीम गुफा – केदारनाथ
- शंकर गुफा – देवप्रयाग
- भरत गुफा – गिरसा
- हनुमान गुफा – गिरसा
- कोटेश्वर गुफा – रुद्रप्रयाग
- मातंग गुफा – मालती (उत्तरकाशी )
- श्रंगी गुफा – उत्तरकाशी
- लाखामंडल गुफा – देहरादून
- गुच्चूपानी – देहरादून
- त्रियम्बक गुफा (पांडूखोली )- द्वाराहाट (अल्मोड़ा)
- पाताल भुवनेश्वर गुफा – गंगोलीहाट (पिथोरागढ़)
- सुमेरु गुफा – गंगोलीहाट (पिथोरागढ़)
- स्वधम गुफा – गंगोलीहाट (पिथोरागढ़)
प्रमुख शिलाएं
- नरसिंह शिला – बद्रीनाथ
- नारद शिला – बद्रीनाथ
- गरुड़ शिला – बद्रीनाथ
- चरण पादुका – बद्रीनाथ
- बारह शिला – बद्रीनाथ
- चन्द्र शिला – तुंगनाथ
- काल शिला – कालीमठ
- भृगु शिला – केदारनाथ
- भीम शिला – माणा (चमोली)
- भागीरथी शिला – गंगोत्री
उत्तराखंड के प्रमुख खिलाड़ी व सम्बंधित खेल
उत्तराखंड के प्रमुख खिलाड़ी
- रामबहादुर क्षेत्री – फुटबॉल
- त्रिलोक सिंह बसेड़ा – फुटबॉल
- पुष्कर सिंह – फुटबॉल
- प्रताप सिंह पटवाल – फुटबॉल
- वीर बहादुर गुरंग – फुटबॉल
- रमेश सिंह रावत – फुटबॉल
- मनीष सनवाल – टाईक्वान्डो
- सुरेन्द्र भंडारी – टाईक्वान्डो
- हरदयाल सिंह – हॉकी
- आर. एस. रावत – हॉकी
- ललित शाह – हॉकी
- हरिश भाकुनी – हॉकी
- भूपाल सिंह नेगी – हॉकी
- सैयद अली – हॉकी
- जसपाल राणा – निशानेबाजी
- सुषमा राणा – निशानेबाजी
- सुभाष राणा – निशानेबाजी
- अभिनव बिंद्रा – निशानेबाजी
- अशोक कुमार शाही – निशानेबाजी
- हिमाद्री थपलियाल – निशानेबाजी
- प्रवीण रावत – निशानेबाजी
- के. सी. सिंह बाबा – भारोत्तोलन
- जगजीत सिंह – भारोत्तोलन
- हंसा मनराल – भारोत्तोलन
- फैय्याज अहमद अंसारी – भारोत्तोलन
- परिमार्जन नेगी – शतरंज
- तारा रावत – क्रिकेट
- एकता बिष्ट – क्रिकेट
- स्नेह राणा – क्रिकेट
- उन्मुक्त चन्द – क्रिकेट
- हरिसिंह थापा – मुक्केबाजी
- धरम चन्द – मुक्केबाजी
- नरेन्द्र सिंह बिष्ट – मुक्केबाजी
- राजेंद्र कुमार पुनेड़ा – मुक्केबाजी
- रमेश सिंह नेगी – मुक्केबाजी
- परम बहादुर मल्ल – मुक्केबाजी
- दिलीप कुमार पौरी – मुक्केबाजी
- किशन सिंह बिष्ट – मुक्केबाजी
- संतोष सिंह – मुक्केबाजी
- खीमानन्द बेलवाल – मुक्केबाजी
- कमला रावत – जूडो
- हयात सिंह खेतवाल – जूडो
- बालेश्वर नाथ पाण्डेय – जूडो
- संजय जोशी – जूडो
- सुरेन्द्र सिंह भंडारी – एथलीट
- पंकज डिमरी – एथलीट
- सुरेश चन्द्र पाण्डेय – एथलीट
- हरिश तिवारी – एथलीट
- पुष्पा सिंह – एथलीट
- गीता मनराल – एथलीट
- मधुमिता बिष्ट – बैटमिन्टन
- अरुण जखमोला – बालीबाल
- शबाली बानू – टेबल टेनिस
- हरिदत्त काफडी – बास्केट बॉल
प्रमुख पर्वतारोही
- बछेंद्री पाल
- हर्ष मणी नौटियाल
- चंद्रप्रभा ऐतवाल
- चंद्रशेखर पाण्डेय
- रतन सिंह चौहान
- हर्षवंती बिष्ट
- हुकुम सिंह रावत
- हरिश चन्द्र सिंह रावत
- सुमन कुटियाल
- लावराज सिंह धर्मसत्तु
उत्तराखंड के प्रमुख रेजीमेन्ट, सैन्य छावनियां एवं प्रमुख सैन्यकर्मी
कुमाऊं रेजीमेन्ट (Kumaun Regiment)
- कुमांऊँ रेजीमेंट की स्थापना सन् 1788 में हैदराबाद में हुयी थी, तथा इसे कुमाऊं रेजीमेन्ट का नाम 27 अक्टूबर 1945 को दिया गया और मई 1948 में इसका मुख्यालय आगरा से रानीखेत स्थान्तरित किया गया
- कुमाऊं रैजीमेंट ने मराठा युद्ध (1803), पिन्डारी युद्ध (1817), भीलों के विरुद्ध युद्ध (1841), अरब युद्ध (1853), रोहिल्ला युद्ध (1854) तथा भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम, झॉंसी (1857) इत्यादि युद्धों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- कुमाऊं रेजीमेन्ट की 13वी व 15वी बटालियन को भारतीय सेना में वीरो का वीर कहा जाता है
- 1988 में कुमाऊं रेजीमेन्ट पर डांक टिकट जारी किया गया
गढ़वाल रेजीमेन्ट (Garhwal Regiment)
- गढ़वाल रेजीमेन्ट का गठन 5 मई 1887 को गोरखा रेजीमेन्ट की दूसरी बटालियन से किया गया , इस रेजीमेन्ट द्वारा 1987 में लेंसडाउन में छावनी बनायीं गयी
- प्रमुख सैन्य छावनियां व उनके स्थापन वर्ष
- अल्मोड़ा छावनी – 1815
- रानीखेत छावनी – 1871
- लेंसडाउन छावनी – 5 मई 1887
- देहरादून छावनी – 30 नवम्बर 1814
- चकराता छावनी – 1866
- नैनीताल छावनी – 1841
- रूड़की छावनी – 1853
उत्तराखंड के प्रमुख सैन्यकर्मी
माधो सिंह भंडारी
- माधो सिंह भंडारी गढ़वाल के रजा महीपति शाह के सेनापति थे
- इन्हें गर्व भंजक के नाम से जाना जाता है
वीरचन्द्र सिंह गढ़वाली
- वीरचन्द्र सिंह गढ़वाली का जन्म 24 दिसम्बर 1891 को पौड़ी गढ़वाल के मासों गाँव में हुआ था ये गढ़वाल रायफल्स में थे
- 23 अप्रैल 1930 को घटित पेशावर कांड के नायक वीरचन्द्र सिंह गढ़वाली ही थे
दरबान सिंह नेगी
- दरबान सिंह नेगी गढ़वाल राइफल्स में थे इन्हें प्रथम विश्व युद्ध में वीरता का प्रदशन करने के लिए 1914 में विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया
गबर सिंह नेगी
- गबरसिंह नेगी गढ़वाल राइफल्स में थे इन्हें प्रथम विश्व युद्ध में वीरता का प्रदशन करने के लिए 1915 में विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया
मेजर सोमनाथ शर्मा
- मेजर सोमनाथ शर्मा कुमाऊं रेजीमेन्ट में थे इन्हें 1947 में मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया
मेजर शैतान सिंह
- इन्हें 1662 के भारत चीन युद्ध में वीरता का प्रदशन करने के कारण मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया
उत्तराखंड : जनगणना - 2011 (Uttarakhand: Census 2011)
कुल जनसँख्या
- राज्य की कुल जनसँख्या – 1,00,86,292
- कुल पुरुषो की संख्या – 51,37,773 (50.93%)
- कुल महिलाओ की संख्या – 49,48,519 (49.07%)
- देश की जनसँख्या में प्रतिशत – 1.69 %
- सर्वाधिक जनसँख्या वाला जिला – हरिद्वार (18,90,422)
- सबसे कम जनसँख्या वाला जिला – रुद्रप्रयाग (42,285)
- दशकीय वृद्धि दर
- 2001 – 2011 के दौरान राज्य में दशकीय वृद्धि दर – 18.80 %
- दशकीय वृद्धि दर में उत्तराखंड का स्थान – 17 वां
- सर्वाधिक दशकीय वृद्धि दर वाला जिला – उधम सिंह नगर
- सबसे कम दशकीय वृद्धि दर वाला जिला- पौड़ी
जनसँख्या घनत्व
- राज्य का कुल जनसँख्या घनत्व – 189
- सर्वाधिक जनसँख्या घनत्व वाला जिला – हरिद्वार (801)
- सबसे कम जनसँख्या घनत्व वाला जिला – उत्तरकाशी (41)
लिंगानुपात
- राज्य का कुल लिंगानुपात – 963
- सर्वाधिक लिंगानुपात वाला जिला – अल्मोड़ा (1139)
- सबसे कम लिंगानुपात वाला जिला – हरिद्वार (880)
साक्षरता
- राज्य की कुल साक्षरता – 78.82%
- सर्वाधिक साक्षरता वाला जिला – देहरादून
- सबसे कम साक्षरता वाला जिला – उधमसिंह नगर
- कुल महिला साक्षरता –70%
- कुल पुरुष साक्षरता – 87.40%
- सर्वाधिक महिला साक्षरता वाला जिला – देहरादून
- सबसे कम महिला साक्षरता वाला जिला – उत्तरकाशी
- सर्वाधिक पुरुष साक्षरता वाला जिला – रुद्रप्रयाग
- सबसे कम पुरुष साक्षरता वाला जिला – हरिद्वार
- औसत साक्षरता की दृष्टि से राज्य का भारत में स्थान – 17 वां
- पुरुष साक्षरता की दृष्टि से राज्य का भारत में स्थान – 13 वां
- महिला साक्षरता की दृष्टि से राज्य का भारत में स्थान – 20 वां
उत्तराखंड : परिवहन तंत्र (Uttarakhand: Transportation System)
सड़क परिवहन
- उत्तराखंड में कुल यातायात में सड़क यातायात का भाग 85 % से अधिक है , कुल सड़क परिवहन में से 80 प्रतिशत निजी वाहन है
- राज्य सड़क परिवहन के अधिकांश भाग पर गढ़वाल मोटर ऑनर्स यूनियन लिमिटेड, गढ़वाल मोटर यूजर्स को-ऑपरेटिव ट्रांसपोर्ट सोसायटी लिमिटेड, टिहरी गढ़वाल मोटर ओनर्स यूनियन लिमिटेड, कुमाऊ मोटर ओनर्स यूनियन लिमिटेड तथा सीमान्त सहकारी संघ आदि निजी कंपनियों का विस्तार है।
- गढ़वाल मोटर आनर्स यूनियन लिमिटेड की स्थापना 1941 में कोटद्वार (पौड़ी) में हुई थी। इसका एक कार्यालय ऋषिकेश में भी है।
- कुमाऊं मोटर ऑनर्स यूनियन लिमिटेड की स्थापना सन् 1939 में काठगोदाम में हुई थी। इसका कार्यालय रामनगर तथा टनकपुर में है।
रेल परिवहन
- उत्तराखंड में 6 जिलो (हरिद्वार, देहरादून, पौड़ी, उधमसिंह नगर , नैनीताल और चम्पावत ) में रेल परिवहन की सुविधा उपलब्ध है
- सर्वाधिक रेल ट्रैक वाला जिला हरिद्वार है
- राज्य की पहली रेल लाइन काठगोदाम से किच्चा है जो 1884 से सेवारत है
हवाई सेवा
- राज्य के प्रमुख हवाई अड्डे निम्नलिखित है
- दून (जौली ग्रान्ट ) हवाई अड्डा – देहरादून
- पंतनगर (फूलबाग) – उधम सिंह नगर
- नैनी सैनी – पिथोरागढ़
- गौचर – चमोली
- चिन्यलिसैण – उत्तरकाशी
उत्तराखंड की प्रमुख कल्याणकारी योजनायें
जननी सुरक्षा योजना
- राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ मिशन के अंतर्गत चलने वाली इस योजना का उद्देश्य महिलाओ को सरकारी अस्पतालों में सुरक्षित प्रसव की सुविधा उपलब्ध करना है
वन्देमातरम योजना
- 9 फरवरी 2004 से शुरू इस योजना का उद्देश्य गर्भवती महिलाओ को निशुल्क उपचार उपलब्ध करना है
किशोरी शक्ति योजना
- यह योजना 2001 में शुरू की गयी जिसका उद्देश्य 11 से 18 वर्ष की बालिकाओ के सर्वांगीण विकास में योगदान देना है
स्वशक्ति योजना
- स्वशक्ति योजना की शुरुआत जनवरी 2002 में की गयी यह योजना महिलाओ से सम्बंधित है
इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मातृत्व सहयोग योजना
- महिलाओं से सम्बंधित इस योजना की शुरुआत राज्य में 19 नवम्बर 2010 को की गयी
सबला योजना
- यह योजन 11 से 18 वर्ष की बकिकाओ से सम्बंधित है
मोनाल परियोजना
- मोनाल परियोजना 11 से 18 की किशोरियों के जीवन कौशल निर्माण के उद्देश्य से शुरू की गयी
आपातकालीन सेवा योजना 108
- यह योजना 15 मई 2008 को शुरू की गयी
रहबर योजना
- इस योजना के तहत गरीब महिलाओ जिनकी आयु 18 से 35 वर्ष है को स्वरोजगार का प्रशिक्षण दिया जाता है
आरोही परियोजना
- यह योजना अध्यापको तथा विद्यार्थियों को कंप्यूटर का प्रशिक्षण देने के लिए 2002 में शुरू की गयी
104 निशुल्क परामर्शी योजना
- 104 निशुल्क परामर्शी योजना के तहत 104 नंबर पर कॉल करके निशुल्क चिकित्सा परामर्श प्राप्त किया जा सकता है
उत्तराखंड के प्रमुख उच्च शिक्षण संस्थान (Higher Education Institute in Uttarakhand)
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (Indian Institute of Technology Roorkee)
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की देश एवं एशिया का सबसे पुराना इंजीनियरिंग कॉलेज है। इस संस्थान की स्थापना 1847 में हुई। 1854 में इसका नाम थॉमस कॉलेज ऑफ़ सिविल इंजीनियरिंग तथा स्वतंत्रता के बाद 1949 में रुड़की विश्वविद्यालय कर दिया गया।
- रुड़की के अलावा इसका एक परिसर सहारनपुर (पेपर तकनीकी विश्वविद्यालय) में भी है। यह भारत का पहला ऐसा संस्थान जहां भूकंप इंजीनियरिंग के लिए अलग विभाग है, जिसे 1960 में शुरू किया गया। यहाँ पर 1995 में शुरू किया गया जल संसाधन विकास प्रशिक्षण केंद्र भी भारत का अकेला केंद्र है। 1986 में स्थापित मॉडल शेकटेबल फैसिलिटी भी सिर्फ यही है।
- इस कॉलेज को 1 जनवरी 2002 को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) का दर्जा प्राप्त हुआ। वर्तमान में यह देश का सातवां भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बन चुका है।
कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल (Kumaun University, Nainital)
- कुमाऊं विश्वविद्यालय की स्थापन 1973 में की गयी ,इसके तीन परिसर नैनीताल , अल्मोड़ा तथा भीमताल में है। इस में समृद्ध 35 महाविद्यालय तथा संस्थान कुमाऊं के 6 जनपदों में फैले हुए है।
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय (Hemwati Nandan Bahuguna Garhwal Central University)
- गढ़वाल विश्वविद्यालय की स्थापना श्रीनगर में 1973 में हुई थी। अप्रैल, 1989 में इसका नाम परिवर्तित कर हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय कर दिया गया था। केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने से पहले इस विश्वविद्यालय में कुल 3 परिसर श्रीनगर मुख्यालय का बिरला परिसर , पौड़ी का डा. गोपाल रेड्डी परिसर तथा टिहरी का स्वामी रामतीर्थ बादशाही थौल परिसर थे। 15 जनवरी 2009 को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद टिहरी स्थित परिसर को अलग कर दिया गया है।
वन अनुसन्धान संस्थान देहरादून (एफ. आर. आई.), देहरादून (Forest Research Institute)
- वन अनुसंधान संस्थान उत्तराखंड के देहरादून में स्थित है, इसकी स्थापना 1878 में ब्रिटिश इंपीरियल वन स्कूल के रूप में डाइट्रिच ब्रैंडिस द्वारा हुई थी। । 1 9 06 में, इसे ब्रिटिश शाही वन्य सेवा के तहत इंपीरियल वन रिसर्च इंस्टीट्यूट के रूप में पुनः स्थापित किया गया था।
- 1 99 1 में, इसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा एक डीम्ड विश्वविद्यालय घोषित किया गया था|
- उत्तराखंड के प्रमुख उच्च शिक्षण संस्थान व उनके स्थापना वर्ष निम्नलिखित है
- गुरुकुल कांगड़ी डीम्ड विश्विद्यालय, हरिद्वार- 1960
- देव संस्कृति वि.वि. , हरिद्वार – 2002
- जी. बी. पन्त कृषि एवं प्रौधोगिकी वि.वि. , पंतनगर – 1960
- दून विश्वविद्यालय , देहरादून – 2005
- हिमगिरी नभ विश्वविद्यालय, देहरादून – 2004
- तकनीकी विश्वविद्यालय, देहरादून – 2005
- उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी – 2005
- पतंजलि योग विश्वविद्यालय, हरिद्वार – 2006
- नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी , श्रीनगर – 2009
- उत्तराखंड आवासीय विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा – 2016
उत्तराखंड के प्रमुख संस्थान (Major institutions of Uttarakhand)
- उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग – हरिद्वार
- भारतीय वन अनुसंधान संस्थान – देहरादून
- इन्द्रा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी – देहरादून
- महात्मा गांधी नेत्र विज्ञान केन्द्र – देहरादून
- लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी – मसूरी (देहरादून)
- जिम कार्बेट संग्रालय – काला ढुंगी (नैनीताल)
- सर्वे आफ इण्डिया – देहरादून
- वाडिया इस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलोजी – देहरादून
- इण्डिया इस्टीट्यूट आफ रिमोड सेंसिग – देहरादून
- फोरेस्ट प्रशिक्षण संस्थान – हल्द्वानी (नैनीताल)
- भारतीय वन्य जीव संस्थान – देहरादून
- उत्तराखण्ड प्रशासनिक प्रशिक्षण अकादमी – नैनीताल
- उत्तराखण्ड न्यायिक एवं विधिक अकादमी – भवाली (नैनीताल)
- क्षेत्रीय अभेलेखागर – नैनीताल
- राष्ट्रीय दृष्टि बधिनार्थ संस्थान – देहरादून
- भारतीय सैन्य संस्थान (IMA) – देहरादून
- भातखडे संगीत महाविदयालय – देहरादून
- वीर चन्द्र सिंह गढवाली अखिल भारतीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान (AIIMS) – ऋषिकेश
- उत्तराखण्ड हाइकोर्ट – नैनीताल
- वन एवं पंचायत प्रशिक्षण अकादमी – हल्द्वानी (नैनीताल)
- भारतीय पुलिस प्रशासनिक अकादमी – नरेन्द्रनगर (पौड़ी गढ़वाल)
- ड्रग कम्पोजिट रिसर्च यूनिट – रानीखेत (अल्मोडा)
- हिमालयन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज – जौलीग्रांट, देहरादून
- राजकीय अभिलेखागार – देहरादून
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग – देहरादून
- उत्तराखण्ड ग्राम्य विकास संस्थान – रुद्रपुर (उधम सिंह नगर)
- भारतीय पशु चिकित्सा सौध संस्थान – मुक्तेश्वर (नैनीताल)
- गोविन्द बल्लभ पन्त इंजीनियरिंग कालेज – गुडदौडी (पौडी गढ़वाल)
- आई.आई.एम – काशीपुर (उधम सिंह नगर)
- शान्ति कुंज – हरिद्वार
- देव संस्कृत विश्वविदयालय – हरिद्वार
- उत्तराखण्ड राजकीय प्रैस – रूडकी
- औषधीय एवं सुगन्धित पौध संस्थान – पन्तनगर (उधम सिंह नगर)
- उत्तराखण्ड राजकीय संग्रहालय – अल्मोडा
- उदय शंकर नृत्य एंव संगीत अकादमी – अल्मोडा
- उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी – हरिद्वार
- केन्द्रीय भवन निर्माण संस्थान – रूडकी
- मोलाराम चित्र संग्रालय – श्रीनगर (टिहरी गढ़वाल)
- राज्य शैक्षिणिक एंव प्रशिक्षण संस्थान – नरेन्द्रनगर (टिहरी गढ़वाल)
- जडी बूटी एवं विकास संस्थान – गोपेश्वर (चमोली)
- नेहरू पर्वतारोहण संस्थान – उत्तरकाशी
- गोबिन्द बल्लभ पन्त इंजीनियरिंग कॉलेज – पौड़ी गढ़वाल
- इण्डियन इस्टीट्यूट आफ आयुर्वेद ड्रग रिसर्च – ताडीखेत (अल्मोडा)
- राजकीय औधोगिक महाविदयालय – भरसाल (पौडी गढ़वाल)
- वीर चन्द्र सिंह गढवाली राजकीय मेडिकल कालेज – श्रीनगर (टिहरी गढ़वाल)
उत्तराखंड के प्रमुख लोकगीत
झुमैलो गीत
- झुमैलो गीत वेदना व प्रेम के प्रतीक है , Iइन गीतों में नारी हृदय की वेदना के साथ ही उसके रूप सोन्दर्य का वर्णन भी मिलता है
जागर गीत
- वे लोकगाथाऍ, जिनका संबंध पौराणिक व्यक्तियों या देवताओं से होता है, ‘जागर कहलाते है। यह किसी धार्मिक अनुष्ठान, तंत्र-मंत्र , पूजा आदि के समय देवताओं या पौराणिक व्यक्तियों के आवाहन या सम्मान में गाए जाते है । उनके गायक को जगरिये कहा जाता है। इसको गाते समय थोडा-बहुत नृत्य भी किया जाता है।
पंवाडा या भड़ौ
- ये गीत वीरो से सम्बंधित है
खुदेड़ गीत
- ये गीत विवाहित महिलाओ द्वारा मायके की याद में गए जाते है
बाजूबंद नृत्य गीत
- खाई-जौनपुर क्षेत्र में गाये जाने वाला यह एक प्रेम नृत्य गीत है। इसे जंगल में बांज , बुरांश , काफल , चीड़ और देवदार के पेड़ो के नीचे बैठ कर गाते है। इसे दूड़ा नृत्य गीत भी कहते है
चौफला गीत
- यह एक मिलन गीत है इसमें रति , हास , मनुहार, अनुनय आदि भावो का चित्रण मिलता है
चौमासा गीत
- यह गीत वर्षा ऋतु में गाए जाते है। जिसमे अधिक वर्षा एवं प्रिय मिलन की आस रहती है। इन गीतों में विरह की भावना दृष्टिगोचर होती है।
झोड़ा गीत
- कुमाऊं क्षेत्र में माघ महीने में गाया जाता हैं, यह एक प्रमुख समूह नृत्य गीत है।
चांचरी गीत
- यह कुमाऊं क्षेत्र का एक नृत्य-गीत है, इसमें स्त्री-पुरुष दोनों भाग लेते है ।
भगनौल गीत
- यह गीत स्त्री को अपने मन में कल्पना करते हुए, उसके मधुर एहसास में प्रेम द्वारा मेलों में हुडकी एवं नगाड़े के धुन पर नृत्य के साथ गाए जाते है।
बैर गीत
- कुमाऊं क्षेत्र का एक तर्क प्रधान नृत्य-गीत है । प्रतियोगिता के रूप में आयोजित किए जाने वाले इस नृत्य गीत के आयोजन में दो गायक तार्किक वाद-विवाद को गीतात्मक रुप में प्रस्तुत करते है।
हुड़की बोली गीत
- यह कृषि से सम्बंधित गीत है जिसे मुख्यतः धान की रोपाई के समय गाया जाता है
उत्तराखंड के प्रमुख लोकनृत्य (Major Folk Dance of Uttarakhand)
झोड़ा नृत्य
- यह कुमाऊं क्षेत्र में माघ के चांदनी रात्रि में किया जाने वाला स्त्री-पुरुषों का श्रंगारिक नृत्य है। मुख्य गायक वृत्त के बीच में हुडकी बजाता नृत्य करता है। यह एक आकर्षक नृत्य है, जो गढ़वाली नृत्य चांचरी के तरह पूरी रात भर किया जाता है।
छोलिया नृत्य
- यह कुमाऊं क्षेत्र का यह एक प्रसिद्ध युद्ध नृत्य है। जिसे शादी या धार्मिक आयोजन में ढाल व तलवार के साथ किया जाता है।
हारुल नृत्य
- यह जौनसारी जनजातियों द्वारा किया जाता है। इस नृत्य के समय रमतुला नामक वाद्ययंत्र अनिवार्य रुप से बजाया जाता है।
बुड़ियात लोकनृत्य
- जौनसारी समाज में यह नृत्य जन्मोत्सव , शादी-विवाह एवं हर्षोल्लास के अन्य अवसरों पर किया जाता है।
पण्डवार्त नृत्य
- यह गढ़वाल क्षेत्र में पांडवों के जीवन प्रसंगों पर आधारित नवरात्रि में 9 दिन चलने वाले इस नृत्य/नाट्य आयोजन में विभिन्न प्रसंगों के 20 लोकनाट्य होते है।
चौफला नृत्य
- राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में स्त्री-पुरुषों द्वारा एक साथ अलग-अलग टोली बनाकर किया जाने वाला यह श्रृंगार भाव प्रधान नृत्य है।
तांदी नृत्य
- गढ़वाल के उत्तरकाशी और जौनपुर (टिहरी) में यह नृत्य किसी विशेष खुशी के अवसर पर एवं माघ महीने में किया जाता है
झुमैलो नृत्य
- तात्कालिक प्रसंगों पर आधारित गढ़वाल क्षेत्र का यह गायन नृत्य झूम-झूम कर नवविवाहित कन्याओं द्वारा किया जाता है।
चांचरी नृत्य
- यह गढ़वाल क्षेत्र में माघ माह की चांदनी रात में स्त्री-पुरुषों द्वारा किए जाने वाला एक शृंगारिक नृत्य है।
छोपती नृत्य
- यह गढ़वाल क्षेत्र का नृत्य प्रेम एवं रूप की भावना से युक्त स्त्री-पुरुष का एक संयुक्त नृत्य संवाद प्रधान होता है।
घुघती नृत्य
- यह गढ़वाल क्षेत्र का नृत्य छोटे-छोटे बालक-बालिकाओं द्वारा मनोरंजन के लिए किया जाता है।
भैलो-भैलो नृत्य
- यह नृत्य दीपावली के दिन भैला बाँधकर किया जाता है।
जागर नृत्य
- यह कुमाऊं एवं गढ़वाल क्षेत्र में पौराणिक गाथाओं पर आधारित नृत्य हैं
थडिया नृत्य
- गढ़वाल क्षेत्र में बसंत पंचमी से बिखोत तक विवाहित लड़कियों द्वारा घर के थाड (आगन/चौक) में थडिया गीत गाए जाते है और नृत्य किए जाते है। यह नृत्य प्राय: विवाहित लड़कियों द्वारा किया जाता है, जो पहली बार मायके जाती है ।
सरौं नृत्य
- यह गढ़वाल क्षेत्र का ढ़ोल के साथ किए जाने वाला युद्ध गीत नृत्य है। यह नृत्य टिहरी व उत्तरकाशी में प्रचलित है।
पौणा नृत्य
- यह भोटिया जनजाति का नृत्य गीत है। यह सरौं नृत्य की ही एक शैली है। दोनों नृत्य विवाह के अवसर पर मनोरंजन के लिए किए जाते है।
उत्तराखंड के प्रमुख त्यौहार
हरेला
- हरेला उत्तराखंड का एक प्रमुख त्यौहार है जो श्रावण मास के पहले दिन मनाया जाता है , इससे 10 दिन पहले एक बर्तन में 5 या 7 प्रकार के बीज बोये जाते है तथा हरेले के दिन इसे काटकर देवताओ को चढ़ाया जाता है
फूलदेई (फूल संक्रांति)
- फूलदेई चैत मास के प्रथम दिन मनाई जाती है इस दिन बच्चे घर-घर जाकर घरो की देहली पर फूल चढाते है
बिखोती
- उत्तराखंड में विषुवत संक्रांति को बिखोती के नाम से जाना जाता है जो बैशाख माह के पहले दिन मनाई जाती है
घी संक्रांति (ओगलिया)
- घी संक्रांति सितम्बर के मध्य में पड़ता है इस दिन सर में घी लगाया जाता है
मकर संक्रांति (घुघुतिया)
- मकर संक्रांति माघ माह के प्रथम दिन मनाई जाती है
खतडुवा
- यह त्यौहार कुमाऊं क्षेत्र में अश्विन माह के पहले दिन मनाया जाता है , यह त्यौहार पशुओ से सम्बंधित है
रक्षा बंधन
- उत्तराखंड में रक्षा बंधन को जन्यो-पुण्यो के नाम से भी जाना जाता है यह त्यौहार श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है
चैंतोल
- यह त्यौहार मुख्यतः पिथोरागढ़ जनपद में चैत माह में मनाया जाता है
जागड़ा
- यह त्यौहार महासू देवता से सम्बंधित है
भिरौली
- यह त्यौहार संतान कल्याण के लिए मनाया जाता है
नुणाई
- यह त्यौहार देहरादून के जौनसार बाबर क्षेत्र में श्रावण मास में मनाया जाता है
उत्तराखंड के प्रमुख पर्यटन व धार्मिक स्थल
- उत्तराखंड के प्रमुख पर्यटन व धार्मिक स्थल व उनकी स्थिति निम्नलिखित है
- हर की पैड़ी – हरिद्वार
- मनसा देवी – हरिद्वार
- चंडी देवी – हरिद्वार
- कुशावर्त घाट – हरिद्वार
- बिल्केश्वर महादेव मंदिर – हरिद्वार
- सप्त ऋषि आश्रम – हरिद्वार
- शांति कुंज – हरिद्वार
- गुच्चुपानी – देहरादून
- टपकेश्वर महादेव – देहरादून
- सहस्त्रधारा – देहरादून
- टाइगर प्रपात – देहरादून
- कालसी – देहरादून
- लाखामंडल – देहरादून
- हनोल – देहरादून
- मसूरी – देहरादून
- कैम्पटी फॉल – मसूरी से 15 किमी की दूरी पर (टिहरी)
- मुनि की रेती – टिहरी जिले में
- गंगोत्री – उत्तरकाशी
- गौमुख – उत्तरकाशी
- हर्षिल – उत्तरकाशी
- हर की दून – उत्तरकाशी
- बद्रीनाथ – चमोली
- आदि बद्री – चमोली
- भविष्य बद्री – चमोली
- वृद्ध बद्री – चमोली
- योगध्यान बद्री – चमोली
- हेमकुण्ड साहिब – चमोली
- माणा – चमोली
- ऊखीमठ – रुद्रप्रयाग
- तुंगनाथ – रुद्रप्रयाग
- मदमहेश्वर नाथ – रुद्रप्रयाग
- गुप्त काशी – रुद्रप्रयाग
- त्रिजुगी नारायण – रुद्रप्रयाग
- चंबा – टिहरी गढ़वाल
- धनोल्टी – टिहरी गढ़वाल
- बूडा केदार – टिहरी गढ़वाल
- सोम का भांडा – पौड़ी गढ़वाल
- कण्वाश्रम – पौड़ी गढ़वाल
- दुगड्डा – पौड़ी गढ़वाल
- खिरसू – पौड़ी गढ़वाल
- लेंस डाउन – पौड़ी गढ़वाल
- देवलगड़ – पौड़ी गढ़वाल
- नैना पीक – नैनीताल
- भुवाली – नैनीताल
- भीमताल – नैनीताल
- कैंची धाम – नैनीताल
- कालाढूंगी – नैनीताल
- मुक्तेश्वर – नैनीताल
- रामगड – नैनीताल
- गार्जिय – रामनगर (नैनीताल)
- कटारमल सूर्य मंदिर – अल्मोड़ा
- चितई मंदिर – अल्मोड़ा
- जागेश्वर – अल्मोड़ा
- चौबटिया – अल्मोड़ा
- मुनस्यारी – पिथोरागढ़
- मिलम ग्लेशियर – पिथोरागढ़
- गंगोलीहाट – पिथोरागढ़
- हाट कलिका मंदिर – पिथोरागढ़
- धारचूला – पिथोरागढ़
- छिपला केदार – पिथोरागढ़
- थल केदार – पिथोरागढ़
- बागनाथ – बागेश्वर
- कौसानी – बागेश्वर
- पांडुस्थल – बागेश्वर
- एक हथिया नौला – चम्पावत
- नौ ढुंगा घर – चम्पावत
- मायावती आश्रम – चम्पावत
- मीठा रीठा साहिब – चम्पावत
- देवीधुरा – चम्पावत
- नानकमत्ता साहिब – उधम सिंह नगर
उत्तराखंड के प्रमुख मन्दिर
प्रमुख शिव मन्दिर
- बैजनाथ – बागेश्वर
- बाघनाथ – बागेश्वर
- बालेश्वर मंदिर – चम्पावत
- बिनसर महादेव – रानीखेत
- जागेश्वर – अल्मोड़ा
- केदारनाथ – रुद्रप्रयाग
- कोटेश्वर महादेव – रुद्रप्रयाग
- क्रांतेश्वर महादेव – चम्पावत
- मध्यमहेश्वर – रुद्रप्रयाग
- ओमकारेश्वर – ऊखीमठ
- तुंगनाथ – रुद्रप्रयाग
- त्रिगुणी नारायण – रुद्रप्रयाग
प्रमुख नाग मन्दिर
- शेषनाग – पांडुकेश्वर
- कालिंगा नाग – रंवाई
- नाग राजा – सेनमुखेन
- नाग देव – पौड़ी
प्रमुख देवी मन्दिर
- कामाख्या देवी – पिथोरागढ़
- कालिका मंदिर – गंगोलीहाट (पिथोरागढ़)
- कसार देवी – अल्मोड़ा
- मनसा देवी – हरिद्वार
- नैना देवी – नैनीताल
- पूर्णागिरी – टनकपुर (चम्पावत)
- श्रीकोट – डीडीहाट (पिथोरागढ़)
- वाराही देवी – देवीधुरा (चम्पावत)
- बालानी देवी – चकराता (देहरादून)
- चंडी देवी – हरिद्वार
- दूनागिरी – द्वाराहाट (अल्मोड़ा)
- धारी देवी – श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल)
- गर्जिया देवी – रामनगर (नैनीताल)
- ज्वाल्पा देवी – पौड़ी
उत्तराखंड के प्रमुख व्यक्ति
कालू महरा
- कालू महरा उत्तराखंड के पहले स्वंत्रता सेनानी थे
- कालू महरा का जन्म चम्पावत के बिसुंड गाँव में हुआ था
- इन्होने 1857 की क्रांति में भाग लिया तथा एक गुप्त संगठन क्रांतिवीर बनाया
हरगोविंद पन्त
- हर्गोविंग पन्त का जन्म 19 मई 1885 को अल्मोड़ा के चितई में हुआ था
बैरिस्टर मुकुंदीलाल
- जन्म – 14 अक्टूबर 1885 (पाटली गाँव , चमोली)
पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त
- जन्म – 10 सितम्बर 1887 ( खूंट , अल्मोड़ा )
- इन्हें हिमालय पुत्र तथा महाराष्ट्र के नाम से भी जाना जाता था
- गोविन्द बल्लभ उत्तरप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे
- 26 जनवरी 1957 को इन्हें भरत रत्ना की उपाधि से सम्मानित किया गया
हर्ष देव औली
- जन्म – 4 मार्च 1890 (गोसानी , चम्पावत)
- उपनाम – काली कुमाऊं का शेर
अनुसूया प्रसाद बहुगुणा
- जन्म – 18 फरवरी 1894
- उपनाम – गढ़ केशरी
भवानी सिंह रावत
- इनका जन्म 8 अक्टूबर 1910 को पौड़ी में हुआ था
- ये आजाद के नेतृत्व वाले हिंदुस्तान प्रजातान्त्रिक समाजवादी संघ के एकमात्र सदस्य थे
- इन्होने दुगड्डा में शहीद मेले की शुरुआत की
डा . भक्त दर्शन
- जन्म – 12 फरवरी 1912 (भैराड़ गाँव , पौड़ी गढ़वाल)
- इन्होने कुली बेगार प्रथा का अंत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया
- श्रीदेव सुमन
- जन्म – मई 1916 (जौल गाँव , टिहरी गढ़वाल)
- इन्होने 23 जनवरी 1939 को देहरादून में टिहरी राज्य प्रजामंडल की स्थापना की
- 3 मई 1944 को सुमन ने आमरण अनसन प्रारंभ किया और 25 जुलाई 1944 को 84 दिन की भूख हड़ताल के बाद उनकी मृत्यु हो गयी
हेमवती नंदन बहुगुणा
- जन्म – 25 अप्रैल 1919 (पौड़ी गढ़वाल)
- उपनाम – धरती पुत्र , हिम पुत्र
चंडी प्रसाद भट्ट
- जन्म – 1934
- इन्होने दशौली ग्राम स्वराज मंडल की स्थापना की , तथा चिपको आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी
- इन्हें 1982 में रेमन मैग्सेसे पुरुष्कार से सम्मानित किया गया
कल्याण सिंह रावत
- जन्म – 1953 (बैनोली , चमोली)
- उपनाम – मैती
- इन्होने वन्य जीवो की रक्षा के लिए हिमालय वन्य जीव संस्थान की स्थापना की
गौरा देवी
- जन्म – 1925 (ग्राम लाता , चमोली)
- उपनाम – चिपको वुमन
उत्तराखंड के प्रमुख व्यक्तियों के उपनाम
गिर्दा, जनकवि - गिरीश तिवारी
काली कुमाऊं का शेर - हर्ष देव ओली
गुसैं या सै - सुमित्रानंदन पन्त
सरला बहन - केथरीन हैलीमन
दैवज्ञ - मुकुन्दराम बड़थ्वाल
गढ़केसरी - अनुसूया प्रसाद बहुगुणा
गर्भभंजक - माधो सिंह भंडारी
अल्मोड़ा की बेटी - आइरिन पन्त
टींचरी माई, ठगुली देवी - दीपा देवी
कुमाऊँ केसरी - बद्रीदत्त पाण्डेय
हिमालय पुत्र, भारत रत्न - गोविन्द बल्लभ पन्त
मौलिक पंडित - नैन सिंह रावत
उत्तराखंड का आजाद - श्रीधर किमोठी
धरतीपुत्र, हिमपुत्र - हेमवन्ती नन्दन बहुगुणा
कुमाऊँ की लक्ष्मीबाई - जियारानी
चारण - शिवप्रसाद डबराल
गढ़वाल की झाँसी की रानी – तीलू रौतेली
शिवानी - गौरा पन्त
गोरा ब्राह्मण - जिम कार्बेट
पहाड़ी विल्सन - फेड्रिक विल्सन
नाक काटने वाली रानी - कर्णावती
धर्माधिकारी – महिधर शर्मा डंगवाल
उत्तराखंड के गाँधी – इन्द्रमणि बड़ोनी
वृक्ष मानव - विश्वेश्वर दत्त सकलानी
गढ़वाली – बच्चू लाल भट्ट
गढ़वाल का हातिमताई - कुंवर सिंह नेगी
गौर्दा, लोकरत्न - गौरी दत्त पांडे
मैती- कल्याण सिंह रावत
श्रीमन्त - मोहन लाल उनियाल
गढ़वाली चित्रकला के जन्मदाता- मौला राम
कुमाऊं का चाणक्य, कुमाऊं का शिवाजी - पं. हर्ष देव जोशी
चिपको वुमन - गौरा देवी
गुमानी पंत - लोक रत्ना पन्त
कुमाऊँ का गाँधी - देवकी नंदन पांडे
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