2021-08-30

मामला क्या है ... उत्तराखंड में भू- कानून की मांग।


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आज का हमारा लेख UTTARAKHAND LAND LAW (उत्तराखंड भू-कानून) के बारे में है। जिसके बारे में विस्तार से इस लेख के माध्यम से हम आज चर्चा करेंगे।


देवभूमि उत्तराखंड की दैवीय और शांत वादियों की रक्षा और इस पलायन के दंश का जवाब देने तथा हमारे भावी पीढि़यों के भविष्य के लिए और हमारी कृषि योग्य भूमि की रक्षा के लिए आज एक सुदृढ़ और सशक्त कानून की आवश्यकता आन पड़ी है।


खिलखिलाते पहाड़, हरे-भरे घास से लदलद मैदान, कल-कल, छल-छल बहते झरने, नदियाँ और पहाड़ की आबोहवा किस को पसन्द नहीं होगी। फिर भी हम पहाडो़ को छोड़कर हर जगह पलायन का दंश ही झेलते आए है।


अभी उत्तराखंड अपने भू कानून को लेकर सुर्खियों में बना हुआ है। आख़िर उत्तराखंड के नागरिकों की मांगें क्या हैं ? और क्यों इसकी आवश्यकता महसूस की गई ? ऐसे ही विषयो पर हम आगे चर्चा करेंगे।


चाहें उत्तराखंड का संगीत, नृत्य, भाषाएं, बोलियों की ही बात हो, या आयुर्वेद औषधियों से समृद्ध पहाड़ी क्षेत्र हो, या अनेक पावन पवित्र नदियों का उदगम क्षेत्र, ऋषि मुनियों की समृद्ध ज्ञान परम्परा ही क्यों न हो आदि। ऐसी ही अनेक ओर भी विशेषताएं उत्तराखंड की भूमि पर मौजूद है, अगर सोचने बैठे तो एक बड़ी लिस्ट तैयार हो जाए।


Demand-for-Land-Law-in-Uttarakhand


उत्तराखंड रीति रिवाजों, परंपराओं, कला और संस्कृति आदि से समृद्ध राज्य है। यहाँ की सांस्कृतिक विशेषताओं का गवाह पूरा देश ही नही बल्कि विश्व भी किसी न किसी रूप में रहा है।


जब भी देश में किसी भी क्षेत्र की संस्कृति को कोई हानि या ख़तरे का संकेत मिलता हैं। तो स्थानीय लोगों ने उसके खिलाफ़ हमेशा से ही अपने पूरे सामर्थ्य के साथ आवाज उठाई है।


ऐसी ही एक गूँज उत्तराखंड राज्य के नागरिकों द्वारा सोशल मीडिया माध्यमों पर, उत्तराखंड की संस्कृति को सहेजने के लिए उठायी जा रही है।


भारत भौगोलिक विभिन्नताओं से सम्पन्न देश हैं यहाँ मैदान, पठार, पहाड़ी क्षेत्र, दलदली क्षेत्र आदि भौगौलिक विशेषताएं पाई जाती हैं। भारत के प्रत्येक राज्य में अलग अलग परंपराएं, रीति रिवाज, कला और संस्कृति मौजूद है जैसे कि रहन-सहन, पोशाक, खान-पान, स्थानीय संगीत, नृत्य आदि। और उत्तराखंड ने इसमें हमेशा चार चाँद लगाए हैं। 


आज का उत्तराखंड का युवा बुध्दिजीवी नागरिक इस बात को अच्छी तरह जनता है और डंके की चोट पर कह सकता है की भारत देश में उत्तराखंड जैसा विवधता संपन्न और कोई दूसरा राज्य नहीं है न हो सकता है जिसमें कला, संस्कृति, नृत्य, संगीत, खान-पान से लेकर धार्मिक, आध्यात्मिक ज्ञान, वीर गाथाएँ, ऐतिहासिक पर्यटन, और नैसर्गिक सुंदरता का अधभूत, अकल्पनीय समावेश हो। 


उत्तराखंड भारत की अतुलनीय अमूल्य धरोहर है जहाँ न जाने कितने मिनी स्विट्जरलैंड और कश्मीर बसते हैं जँहा विकास और रोजगार की असीमित संभावनाएं है उसी की सुरक्षा के लिए आज का उतराखंड वासी एकजुट और तत्पर  होकर भू कानून की पुरजोर मांग कर रहा है पर राज्य सदैव से ही सरकार की उपेक्षा का गवाह रहा है। 


तो आइये उत्तराखण्ड भू कानून के बारे में विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं। 


क्या है उत्तराखंड भू कानून?

साल 2000 में जब उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग कर अलग संस्कृति, बोली-भाषा होने के दम पर एक संपूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया था. उस समय कई आंदोलनकारियों समेत प्रदेश के बुद्धिजीवियों को डर था कि प्रदेश की जमीन और संस्कृति भू माफियाओं के हाथ में न चली जाए. इसलिए सरकार से एक भू-कानून की मांग की गई। 


उत्तराखंड राज्य बनने के बाद 2002 तक उत्तराखंड में अन्य राज्यों के लोग, केवल 500 वर्ग मीटर जमीन खरीद सकते थे। 2007 में यह सीमा 250 वर्गमीटर कर दी गयी थी। 6 अक्टूबर 2018 में सरकार अध्यादेश लायी और “उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम,1950″ में संसोधन का विधेयक पारित करके, उसमें धारा 143 (क) धारा 154(2) जोड़ कर पहाड़ो में भूमिखरीद की अधिकतम सीमा समाप्त कर दी।


आज कल सोशल मीडिया पर उत्तराखंड मांगे भू कानून ट्रेंड कर रहा है। सभी उत्तराखंडियों की एक ही कोशिश है, कैसे भी वर्तमान सरकार के कानों में ये बात पहुँचे।


इस अभियान के पीछे कोई सियासी सोच नहीं है बल्कि यह पहाड़ और यहां की संस्कृति को बचाने के लिए एक जन आंदोलन बन रहा है। उत्तराखंड में यह कानून ना होने के कारण यहां दूरदराज के पहाड़ और गांवों में भूमि पर राज्य से बाहर के लोगों का आधिपत्य होने लगा है।


उत्तराखंड में भू कानून का मुद्दा अचानक गरमा गया है, इस बार इस कानून के पक्ष में आम युवा एकजुट और एक पक्ष में है। बीते कई दिनों से टि्वटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम सहित सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भू कानून के समर्थन में युवा जोरदार अभियान छेड़ रहे हैं। इसमें लोकगीतों से लेकर एनिमेशन और पोस्टर तक का सहारा लिया जा रहा है।


सोशल मीडिया के माध्यम से उत्तराखंड के युवाओं ने ओने पौने दाम पर बिक रही कृषि भूमि बचाने के लिए मजबूत भू कानून की मांग को लेकर अभियान छेड़ दिया है। तमाम सोशल मीडिया मंच पर बीते महीनों से भू कानून की मांग ट्रेंड कर रही है।


उत्तराखंड का युवा भू-कानून की मांग क्यों रहा है ?


उत्तराखंड का भू कानून बहुत ही लचीला है। जिसके कारण यहाँ की जमीन देश का कोई भी नागरिक आसानी से खरीद सकता है।


यहाँ के कुछ लोग, क्षणिक धन के लालच में अपनी पैतृक जमीनों को, अन्य राज्य के लोंगो को बेच रहे हैं। उन लोगो को या तो भविष्य का ये भयानक खतरा, जो हमारे समाज के सीधे-सादे लोगो को नहीं दिख रहा है, या फिर पैसे के लालच में जानबूझकर अपनी कीमती जमीनों को बेच रहे हैं। 


इसी पर लगाम लगाने के लिए, कुछ सामाजिक कार्यकर्ता, अन्य युवा मिल कर उत्तराखंड के लिए नए और सशक्त भू कानून की मांग कर रहे हैं।


वर्तमान स्थिति यह है, कि देश के हर कोने से लोग यहाँ जमीन लेकर रहने लगे हैं। जो उत्तराखंड की संस्कृति, भाषा रहन-सहन, उत्तराखंडी समाज के विलुप्ति का कारण बन सकता है। 


धीरे-धीरे यह पहाड़ी जीवन शैली, पहाड़वाद को विलुप्ति की ओर धकेल रहा है। इसलिए सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय लोग, एक सशक्त, हिमांचल के जैसे भू कानून की मांग कर रहें हैं।


इसीलिए ट्विटर (Twitter) और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर, उत्तराखंड मांगे भू कानून ट्रेंड कर रहा है।


क्या है हिमांचल का भू-कानून 

 

1972 में हिमाचल राज्य में एक कानून बनाया गया,जिसके अंतर्गत बाहरी लोग, अधिक पैसे वाले लोग, हिमाचल में जमीन न खरीद सकें। उस समय हिमाचल के लोग इतने सम्पन्न नहीं थे, और यह आशंका थी, कि हिमाचली लोग, बाह्य लोगो को अपनी जमीन बेच देंगे,और भूमिहीन हो जाएंगे। और हिमाचली संस्कृति की विलुप्ति का भी खतरा बढ़ जाएगा।


हिमाचल के प्रथम मुख्यमंत्री और हिमांचल के निर्माता, डॉ यसवंत सिंह परमार जी ने ये कानून बनाया था। हिमांचल प्रदेश टेनेंसी एंड लैंड रिफॉर्म एक्ट 1972 (Himanchal Pradesh Tenancy and Land Reforms Act , 1972) में प्रावधान किया था।


एक्ट के 11वे अध्याय में  Control on Transfer of Lands में धारा-118 के तहत हिमाचल में कृषि भूमि नही खरीदी जा सकती, गैर हिमाचली नागरिक को यहाँ, जमीन खरीदने की इजाजत नही है। और  कॉमर्शियल प्रयोग के लिए आप जमीन किराए पे ले सकते हैं।


2007 में धूमल सरकार ने धारा-118 में संशोधन कर के यह प्रावधान किया था, कि बाहरी राज्य का व्यक्ति जिसे हिमाचल में 15 साल रहते हुए हो गए हों, वो यहां जमीन ले सकता है। इसका बहुत विरोध हुआ, बाद में अगली सरकार ने इसे बढ़ा कर 30 साल कर दिया।

 

समर्थन में सांकेतिक धरना देने की अपील

 

सोशल मीडिया मंच के जरिए कई लोगों ने भू कानून के समर्थन में कई बार अपने घरों में 15 मिनट का सांकेतिक धरना देने की अपील की है। हमारे समाज में स्वरोजगार को अभी भी इतनी अहमियत नहीं मिली है पर भविष्य में आने वाली भावी पीढ़ी जरूर इस दिशा में सोचेगी । इसके लिए यहां की भूमि को बचाना अत्यंत आवश्यक है। इस भू-कानून की मांग का उद्देश्य मात्र पहाड़ और यहां के गाँवो की भूमि को बचाना है और कुछ भी नहीं।


हमें हमारी सांस्कृतिक विरासत, हमारी लोकभाषा एवं लोक कला, और यहाँ की सुंदतरता और शांति को सहेजे रखना है तो एक सशक्त भू-कानून की मांग करनी होगी। जिससे हमारी लोकसंस्कृति के साथ-साथ हमारे हकों की भी रक्षा सुनिश्चित हो सके।


उत्तराखंड की संस्कृति की रक्षा, पलायन पर रोक और उत्तराखंड को विकसित करने के लिए एक सख्त भू-कानून जरूरी है। जब देश के एक हिमालयी राज्य हिमांचल में सख्त भू-कानून बन सकता है तो उत्तराखंड क्यों नही ?


देश की विविधता में एकता की विशेषता को संरक्षित करने के लिए स्थानीय संस्कृति को सहेजना अत्यंत आवश्यक हैं।  प्रत्येक स्थान की स्थानीय परम्पराओं, रीती रिवाजो, कला और संस्कृति में कुछ न कुछ विशेष ज्ञान ( जैसे संगीत, आयुर्वेद आदि ) अवश्य समाहित होता हैं। जिससे अगर हम स्थानीय संस्कृति को सहेजने का प्रयास नहीं करेंगे तो हज़ारो वर्षो  से स्थानीय व्यक्तियों के पास मौजूद हमारी ज्ञान रूपी धरोवर नष्ट होने की कगार पर आ जायेगी।


अतः भारत राष्ट्र की विशेषता तभी अखंड रह पाएगी जब देश के राज्यों की विशेषताओं को संरक्षित करने का कार्य किया जाएगा। सरकार को सभी पहलुओं पर विचार करके इस विषय को गंभीरता से लेते हुए।  इस विषय को अपनी प्राथमिकताओं में रखना चाहिए।


Final Words (अंतिम शब्द )

एक उत्तराखंड वासी के रूप में हमारा उद्देश्य उत्तराखंड समाज में जागरूकता का विकास, ज्ञान का प्रसार, उत्तराखंड की कला और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए भरसक प्रयास और प्रसार करना होना चाहिए।


मैं उत्तराखंड  में जन्म लेने वाला भारत देश में उत्तराखंड की अमूल्य, अलौकीक, समृद्ध संस्कृति को संरक्षित और सहेजने के पक्ष में हूँ और भू कानून की मांग करता हूँ तथा आप से भी अपेक्षा रखता हूँ की आप इस मुहीम में उत्तराखंड राज्य का साथ देंगे।


मैं आपसे उत्साहपूर्ण अपील करता हूँ  की इस लेख को अपने मित्रों और परिचितों के साथ अवश्य शेयर करें और कमेंट बॉक्स में अपना समर्थ अंकित करें।

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